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आप्तवाणी-७
अतः खरी हकीकत क्या कहती है कि तू यदि पुण्यशाली है तो बेकार हाथ-पैर किसलिए मारता है? और तू पुण्यशाली नहीं है तब भी बेकार हाथ-पैर किसलिए मारता है?
पुण्यशाली तो कैसा होता है? ये अमलदार भी जब ऑफिस में से अकुलाकर घर आते हैं, तब पत्नी क्या कहेगी कि, 'डेढ़ घंटा लेट हो गए, कहाँ गए थे?' ये देखो पुण्यशाली! पुण्यशाली को ऐसा होता होगा? पुण्यशाली को तो हवा का एक उल्टा झोंका भी नहीं छू पाता। बचपन से ही वह क्वॉलिटी अलग होती है। अपमान का संयोग नहीं मिलता। जहाँ जाए वहाँ पर 'आओ-आओ भाई' इस तरह से पले-बढ़े होते हैं। और यह तो जहाँ-तहाँ टकराता ही रहता है। उसका अर्थ क्या है? फिर, जब पुण्य खत्म हो जाता है, तब थे वैसे के वैसे! यानी अगर तू पुण्यशाली नहीं है तो पूरी रात पट्टियाँ बाँधकर घूमने से भी क्या सुबह पचास मिल जाएँगे? इसलिए बेकार हाथ-पैर मत मार और जो मिला है, उसमें खा-पीकर सोया रह न चुपचाप!
प्रश्नकर्ता : वह तो प्रारब्धवादी हुआ न?
दादाश्री : नहीं, प्रारब्धवादी नहीं। तू अपनी तरह से काम कर, मेहनत करके रोटी खा। बाकी दूसरी तरफ हाथ-पैर किसलिए मारता रहता है? ऐसे इकट्ठा करूँ और वैसे इकट्ठा करूँ! यदि तेरा घर में मान नहीं है, बाहर मान नहीं है, तो किसलिए बेकार हाथ-पैर मारता है? और जहाँ जाए वहाँ पर उसे 'आईए, बैठिए' कहनेवाले होते हैं, जो ऐसे बहुत बड़े पुण्य लेकर आए हों, उनकी तो बात ही अलग होती है न?
ये सेठ पूरी जिंदगी में पच्चीस लाख लेकर आए होते हैं, वह पच्चीस लाख के बाइस लाख करता है, लेकिन बढाता नहीं है। बढ़ेगा कब? यदि वह हमेशा ही धर्म में रहे तो। लेकिन यदि उसमें खुद की दख़ल करने गया तो बिगड़ जाएगा। कुदरत में हाथ डालने गया कि बिगड़ जाएगा। लक्ष्मी आए, तब उसे वह