________________
लक्ष्मी की चिंतना (२)
संतों के ठहरने की व्यवस्था, भोजन वगैरह, यानी कि दान तो ज़बरदस्त चल रहा था, इसीलिए दानवीर कहलाए! हमने यह देखा है सारा। जैसे-जैसे हर एक को देते जाते थे, वैसे-वैसे धन बढ़ता जाता था।
धन का स्वभाव कैसा है? यदि कभी अच्छी जगह पर दान में जाए तो अत्यधिक बढ़ता है। ऐसा धन का स्वभाव है। और यदि जेब काटो तो आपके घर पर कुछ भी नहीं रहेगा। इन सभी व्यापारियों को हम इकट्ठा करें और पूछे कि भाई, कैसा चल रहा है आपका? बैंक में दो हज़ार तो होंगे न? तब कहेगा कि साहब, बारह महीने में लाख रुपये आए, लेकिन हाथ में कुछ भी नहीं! इसीलिए तो कहावत पड़ी न कि चोर की माँ कोठी में मुँह डालकर रोए! कोठी में कुछ होगा नहीं, तो रोएगी ही न!
लक्ष्मी का प्रवाह दान है और जो सच्चा दान देनेवाला है वह कुदरती रूप से एक्सपर्ट ही होता है। इंसान को देखते ही समझ जाता है कि 'भई, ज़रा ऐसे ही लग रहे हैं।' इसलिए उनसे कहता है कि, 'बेटी की शादी के लिए पूरे पैसे नहीं मिलेंगे। तुझे जो भी कपड़े-लत्ते चाहिए, बाकी और कुछ चाहिए तो ले जाना।' और कहेगा कि बेटी को यहाँ बुला ला। वह बेटी को कपड़े, ज़ेवर वगैरह देता है। रिश्तेदारों के वहाँ मिठाई खुद के घर से भिजवा देता है। उसका सारा व्यवहार संभाल लेता है, लेकिन समझ जाता है कि यह टुच्चा आदमी है, हाथ में नक़द देने जैसा नहीं है। यानी कि दान देनेवाले भी बहुत एक्सपर्ट होते हैं।
पुण्य के प्रताप से पैसा लक्ष्मी जी तो पुण्यशाली के पीछे ही घूमती रहती हैं। और मेहनती लोग लक्ष्मी जी के पीछे घूमते हैं। इसलिए हमें देख लेना चाहिए कि पुण्य होगा तो लक्ष्मी जी पीछे आएँगी। वर्ना मेहनत से तो रोटी मिलेगी, खाना-पीना मिलेगा और एकाध बेटी होगी तो उसकी शादी कर सकेंगे। वर्ना पुण्य के बिना लक्ष्मी नहीं मिलती।
पड-लते चाहा को यहाँ बल वहाँ मिठाई है, लेकिन