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आप्तवाणी-७
आपने उलझा दिया और अब भागकर क्या करना चाहते हो? भगोड़ा वृत्ति नहीं होनी चाहिए। उलझनें आएँ तो सामना करो।
प्रश्नकर्ता : यदि हम सामना करें, उसका अवरोध करें, प्रतिकार करें तो उससे अहंकार बढ़ता है।
दादाश्री : चिंता करने के बजाय सामना करना अच्छा। चिंता के अहंकार के बजाय सामना करने का अहंकार छोटा है। भगवान ने कहा है कि, 'जहाँ सामना करना हो वहाँ पर करना, लेकिन चिंता मत करना।' जो चिंता करे उसके लिए दो दंड! रात को सभी कहते हैं कि, 'ग्यारह बज गए हैं, आप अब सो जाओ।' सर्दी के दिन हैं और आप मच्छरदानी के अंदर घुस गए, ग्यारह बजे हैं, घर के सभी लोग सो गए हैं। मच्छरदानी में जाने के बाद आपको याद आता है कि, एक आदमी का तीन हज़ार का बिल बाकी है और उसकी मुद्दत निकल गई है। तो कहते हो, 'आज हस्ताक्षर करवा लिए होते तो मुद्दत मिल जाती, लेकिन आज हस्ताक्षर नहीं करवाए।' फिर यदि पूरी रात वह चलता रहे, तो क्या रात को ही हस्ताक्षर हो सकते हैं? नहीं हो सकते न? तो आराम से सो जाएँ तो अपना क्या बिगड़ेगा?
भगवान कहते हैं कि चिंता करनेवाले के लिए दो दंड हैं और चिंता नहीं करनेवाले के लिए एक दंड है। अट्ठारह वर्ष का एकलौता जवान बेटा मर जाए तो उसके बाद जितनी चिंता करते हैं, जितना दु:ख मनाते हैं, सिर फोड़ते हैं, और जो कुछ भी करते हैं, उनको दो दंड हैं और जो ये सब नहीं करते, उनके लिए एक ही दंड है। बेटा मर गया, उतना ही दंड है
और सिर फोड़ा, वह अतिरिक्त दंड है। हम ऐसे दो तरह के दंड में कभी भी नहीं आते। इसलिए मैंने इन लोगों से कहा है कि, “पाँच हज़ार रुपये की जेब कट जाए तब 'व्यवस्थित' कहकर आगे निकल जाना और चैन से घर चले जाना।"
यह एक दंड तो अपना खुद का ही हिसाब है। इसलिए