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आप्तवाणी-६
दादाश्री : हाँ, वह सब अहंकार है लेकिन कुल मिलाकर वह कुछ लाभ नहीं देता। थोड़ा पुण्य बंधता है। अच्छा करनेवाला कब गलत कर देगा, वह कहा नहीं जा सकता। आज हिन्दुस्तान के लिए लड़ रहा है और कल उसके कैप्टॅन के साथ भी झगड़ा कर लेगा। उसका कुछ ठिकाना नहीं है। अहंकार बिल्कुल निर्लज्ज है। कब उल्टा करेगा, वह कहा नहीं जा सकता। वह ध्येय रहित चीज़ है। और जितने लोग अहंकार से ध्येय रखते थे, वे सब हिन्दुस्तान में पूजे जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : परंतु आगे बढ़ने के लिए अहंकार की ज़रूरत तो है न?
दादाश्री : वह अहंकार तो अपने आप रहता ही है। अहंकार अपने रखने से नहीं रहता। आकर घुस ही जाता है!
प्रश्नकर्ता : मनोविज्ञान में ऐसा लिखा है कि पर्सनालिटी के डेवेलपमेन्ट के लिए थोड़े-बहुत अहंकार की ज़रूरत है, वह ठीक है? ___ दादाश्री : वह तो कुदरती होता ही है। डेवेलपमेन्ट के लिए कुदरत का नियम ही है कि अहंकार खड़ा होता है और खुद डेवेलप होता जाता है। ऐसे करते-करते जब डेवेलपमेन्ट पूरा होने लगता है, तब हिन्दुस्तान में आता है। उसके बाद उस डेवेलपमेन्ट की बहुत ज़रूरत नहीं रहती। मोक्ष का मार्ग मिल जाए, फिर अहंकार का ऐसा पागलपन कौन करेगा? यह तो भले ही कितना भी अच्छा होगा, दानेश्वरी होगा, परंतु घर पहुँचे तो बहुत सारी चिंता, उपाधियाँ होती ही हैं ! पूरा दिन अंतरदाह चलता ही रहता है!
'आत्मप्राप्ति' के लक्षण प्रश्नकर्ता : यदि मैंने मेरे आत्मा को पहचान लिया हो, तो मुझमें कौन-से लक्षणों की शुरूआत होगी? मुझमें कैसा परिवर्तन होगा कि जिससे मैं समझ सकूँ कि मैं सही रास्ते पर हूँ?
दादाश्री : सब से पहले तो इगोइज़म बंद हो जाएगा। दूसरा, क्रोधमान-माया-लोभ चले जाएँगे, तब समझना कि आप आत्मा हो गए! आपके ऐसे लक्षण हो गए हैं?