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आप्तवाणी-६
दादाश्री : हमारे कहे अनुसार आप करो कि 'यह सारा कर्म के अधीन है।' तो आपका काम हो जाएगा और यदि हमारा जानेवाला होगा, तभी जाएगा। इसलिए आपको घबराने का कोई कारण नहीं है।
____ अंधेरी रात में गाँव में दीये के प्रकाश में कमरे में साँप को घुसते हुए देखा, फिर आपसे से सोया जा सकेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं, भय लगेगा। दादाश्री : और आप अकेले ही जानते हों, तो दूसरों को क्या होगा? प्रश्नकर्ता : वे तो आराम से सो जाएँगे!
दादाश्री : तब भगवान ने कहा कि वह आराम से सो रहा है, तो तू क्यों नहीं सोता? तब वह कहता है, 'मैंने साँप को आते हुए देखा, निकलते हुए देखूगा तब सो जाऊँगा।' उसे साँप के घुसने का ज्ञान हुआ है। निकलने का ज्ञान होगा, तब छूटा जा सकेगा। लेकिन जब तक मन में वह शंका रहे तब तक नहीं छूटा जा सकता।
प्रश्नकर्ता : निकलते हुए नहीं देखा, तब तक शंका किस तरह जाएगी?
दादाश्री : 'ज्ञानी' के 'ज्ञान' से शंका जाएगी! कुछ किसी से भी, साँप से भी छुआ नहीं जा सके, ऐसा यह जगत् है। 'हम' ज्ञान में देखकर कहते हैं कि यह जगत् एक क्षणभर के लिए भी अन्यायी नहीं हुआ है। जगत् की कोर्ट, न्यायाधीश, मध्यस्थ, सभी अन्यायवाले हो सकते हैं, परंतु जगत् अन्यायी नहीं हुआ है। इसलिए शंका मत करना।
प्रश्नकर्ता : यानी भय नहीं रखें? साँप देखा तो भले ही देखा, परंतु उसका भय नहीं रखना है?
दादाश्री : नहीं रखने से भय नहीं रहे, ऐसा नहीं है, वह तो हो ही जाता है। अंदर ही अंदर शंका करता ही रहेगा। किसी से कुछ हो सके ऐसा नहीं है। ज्ञान में रहने से शंका जाएगी।