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________________ [५] समझ से सोहे गृहसंसार मतभेद में समाधान किस प्रकार? १८३ डीलिंग नहीं आए, तो दोष... २१२ ...इसलिए टकराव टालो १८५ 'व्यवहार' को 'इस' तरह से... २१४ सहन? नहीं, सोल्युशन लाओ १८६ 'मार' का फिर बदला लेती है २१७ हिसाब चुके या कॉज़ेज़ पड़े? १८८ फरियाद नहीं, निकाल लाना है २१८ 'न्याय स्वरूप', वहाँ उपाय तप १८८ सुख लेने में फँसाव बढ़ा २१९ उत्तम तो, एडजस्ट एवरीव्हेर १९० इस तरह शादी निश्चित होती है २१९ घर में चलन छोड़ना तो पड़ेगा न?१९२ 'जगत्' बैर वसूलता ही है २२० रिएक्शनरी प्रयत्न नहीं ही... १९३ 'कॉमनसेन्स' से 'सोल्युशन'... २२१ ...नहीं तो प्रार्थना का एडजस्टमेन्ट१९४ रिलेटिव, अंत में दगा समझ में...२२२ 'ज्ञानी' के पास से एडजस्टमेन्ट १९४ कुछ समझना तो पड़ेगा न? २२३ आश्रित को कुचलना, घोर अन्याय१९५ रिलेटिव में तो जोड़ना २२४ साइन्स समझने जैसा १९६ वह सुधरा हुआ कब तक टिके? २२५ जो भुगते उसकी ही भूल १९७ एडजस्ट हो जाएँ, तब भी सुधरे २२५ मियाँ-बीवी १९८ सुधारने के बदले सुधरने... २२६ झगड़ा करो, पर बगीचे में १९९ किसे सुधारने का अधिकार? २२७ ...यह तो कैसा मोह? २०० व्यवहार निभाना, एडजस्ट होकर २२७ ...ऐसा करके भी क्लेश टाला २०० नहीं तो व्यवहार की गुत्थियाँ... २३० मतभेद से पहले ही सावधानी २०२ काउन्टरपुली-एडजस्टमेन्ट की रीति २३० क्लेश बगैर का घर, मंदिर जैसा २०३ उल्टा कहने से कलह हुई... २३२ उल्टी कमाई, क्लेश कराए २०४ अहो! व्यवहार का मतलब ही... २३३ प्रयोग तो करके देखो २०५ ...और सम्यक् कहने से कलह...२३३ धर्म किया (!) फिर भी क्लेश?२०५ टकोर, अहंकारपूर्वक नहीं करते २३४ ...तब भी हम सुल्टा करें २०६ यह अबोला तो बोझा बढ़ाए २३५ 'पलटकर' मतभेद टाला २०७ प्रकृति के अनुसार एडजस्टमेन्ट... २३६ ...यह तो कैसा फँसाव? २०९ सरलता से भी सुलझ जाए २३६ आक्षेप, कितने दुःखदायी! २१० ...सामनेवाले का समाधान... २३७ खड़कने में, जोखिमदारी खुद... २११ झगड़ा, रोज़ तो कैसे पुसाए? २३८ प्रकृति पहचानकर सावधानी रखना२११ ‘झगड़ाप्रूफ' हो जाने जैसा है २३९ 47
SR No.030015
Book TitleAptavani Shreni 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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