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________________ 1. इसे कहते हैं आप्तवाणी! "आप्तवाणी अर्थात् आप्तपुरुष की वाणी। एक तो तीर्थकर भगवान आप्तपुरुष कहलाते हैं और दूसरे तीर्थंकर भगवान के अनुगामी आप्तपुरुष कहलाते हैं। आप्तपुरुष, जो संसार में भी स्वस्व प्रकार से विश्वास करने योग्य हों, वे आप्तपुरुष कहलाते हैं! और आप्तपुरुष की वाणी आप्तवाणी कहलाती है। वह वाणी अविरोधाभास होती है, सैद्धांतिक होती है। उनकी वाणी की समीक्षा करने योग्य नहीं है। वे जो कुछ भी कहते हैं, वह सारा शास्त्र ही है! वे चौबीस तीर्थंकरों के आगम ही कहते हैं! जो वाणी बेजोड़ कहलाती है, जो वाणीशास्त्र में लिखने योग्य है, उस वाणी में से ये सारी पुस्तकें छपती हैं। ये पुस्तकें बोलेंगी सभी कुछ, अच्छा बोलेंगी और ये पुस्तकें बोलती ही है। लोगों की हेल्प करती है। अभी तो कई लोगों का भला होगा। पूरेजगत् का कल्याण होगा!" -दादाश्री आत्मविज्ञानी 'ए. एम. पटेल' के भीतर प्रकट हुए दादा भगवानना असीम जय जयकार हो 9-783362126025 Printed in India dadabhagwan.org Price Rs100
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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