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आप्तवाणी-२
वीतराग तो बिल्कुल अलग ही थे। वीतरागों को वीतराग मार्ग में जो करना पड़ा था वह अभी के लोगों के ख्याल में भी नहीं है, लक्ष्य में नहीं है और उन्हें जो पसंद नहीं था, लोग वही करते हैं। उन्हें क्या पसंद नहीं था कि, 'भाई, एक पक्ष में मत पड़ना। तू तप में पड़ा तो तपोगच्छी मत बन जाना।' वीतराग क्या कहते हैं कि, 'एक गच्छ में मत पड़ना।' वह तो एक कोना है मकान का। मकान का एक ही कोना यदि साफ करते रहोगे तो पूरा मकान साफ हो सकेगा? शुद्धि होगी? भगवान ने कहा है कि, 'सभी कोने साफ करना। भगवान कहीं तेरे कोने साफ करने के लिए आनेवाले नहीं हैं। ये लोग तो सिर्फ तप के पीछे पड़ गए, या सिर्फ त्याग के पीछे पड़ गए। तो कितने ही लोग पुस्तकें पढ़ते रहते हैं।
कबीर जी कहते हैं, 'पुस्तक पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोई' कबीर जी को एक भी पंडित बनता हुआ नहीं दिखा। पुस्तकें पढ़कर पुस्तक जैसे बन जाते हैं ! जिसकी आराधना करता है, उसके जैसा बन जाता है, आत्मा का स्वभाव ऐसा है। वीतराग की आराधना करता है तो वीतराग बन जाता है, यानी वीतराग की आराधना करोगे तो मोक्ष में जा पाओगे। मोक्ष का यही एक मार्ग है, बाकी के सभी अनंत मार्गों में से एक मार्ग, वीतरागों की यह छोटी सी पगडंडी ही सिर्फ ऐसी है जो कि मोक्ष में ले जाती है। इस पगडंडी पर से एक व्यक्ति भी बहुत मुश्किल से जा सकता है. कभी-कभी ही! वर्ना बाकी के अन्य मार्ग तो हैं ही, अन्य मार्ग अनंत हैं और वे सभी चतुर्गति में भटकानेवाले मार्ग हैं। देवगति और दूसरी जगह भटकानेवाले मार्ग हैं और मात्र इतने से ही मन में संतुष्टि मान लेते हैं और कहते हैं कि, 'हमें तो बहुत कुछ आता है, हमने बहुत कुछ प्राप्त कर लिया
ज्ञानी के पीछे-पीछे वीतरागों ने कहा है कि, 'मोक्ष के लिए कुछ भी नहीं करना है, मात्र ज्ञानी के पीछे-पीछे चले जाना।' उनकी पीठ पीछे सिगरेट पीएँ तो? 'हाँ, पीना। उनकी हाज़िरी में सिगरेट भी पीना, लेकिन 'ज्ञानी' के पीछे -पीछे चले जाना। उनका हाथ मत छोड़ना' कहते हैं। 'ज्ञानी' किसे कहते