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वीतराग मार्ग कवि ने गाया है कि, 'जेना वाणी, वर्तन ने विनय छे मनोहर प्रेमात्मा।'
वाणी मनोहर होनी चाहिए, वर्तन मनोहर होना चाहिए और विनय मनोहर होना चाहिए। वीतरागों का मार्ग विनय का है, परम विनय से मोक्ष होता है। अन्य कुछ भी पढ़ने-करने की ज़रूरत नहीं है, पढ़नेवाले तो कितना ही पढ़-पढ़कर थक गए हैं। वीतरागों का मार्ग परम विनय माँगता है, उन्हें और कुछ भी नहीं चाहिए।
वीतरागों ने पूरे जगत् का एक ही धर्म देखा, वीतराग धर्म, और वीतराग धर्म से ही मोक्ष है। इसलिए वीतरागता प्राप्त करो। आज तो एक जैन धर्म में ही कितने सारे भाग पड़ गए हैं? अपना मार्ग तो जैन नहीं है, वैष्णव नहीं है, स्वामिनारायण नहीं है, मात्र वीतराग मार्ग है!
क्रोध-मान-माया-लोभ चले गए तो जानना कि वीतराग धर्म प्राप्त हुआ, यह निशानी है उसकी। कोई पूछे कि, 'इसका बुखार उतर गया है या नहीं?' तब हम कहते हैं कि, 'थर्मामीटर लगाओ और देखो। यदि वह ९८ डिग्री दिखाए तो बुखार नहीं है और ९७ डिग्री दिखाए तो बिलो नॉर्मल बुखार है और ९९ डिग्री दिखाए तो अबव नॉर्मल बुखार है।' इस प्रकार थर्मामीटर लगाकर देखना चाहिए। वीतराग क्या कहते हैं? 'जिसके क्रोध-मान-मायालोभ चले गए उसे वीतराग मार्ग प्राप्त हुआ और जिसके पास वे साबुत हैं, वे ज़रा भी नहीं टूटे हैं, जिसमें कंकड़ भी नहीं टूटा, उसे वीतराग धर्म प्राप्त हुआ कैसे कहा जाएगा? जैन धर्म तो प्राप्त हुआ है, अरे, अनंत जन्मों से
जैन धर्म तो प्राप्त हुआ है। कहीं एक जन्म से थोड़े ही जैन धर्म प्राप्त हुआ है? लेकिन वीतराग धर्म किसी भी जन्म में प्राप्त नहीं हुआ है!