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खुद शुद्धात्मा में रहते हैं और प्रतिष्ठित आत्मा से अपने खुद के शुद्धात्मा की और इन दादा की भक्ति करवाते हैं। वह सबसे ऊँची अंतिम भक्ति है!"
- दादाश्री
- मोक्ष यानी क्या?
मोक्ष यानी मुक्त भाव, सर्व बंधनों से मुक्ति, सर्व दु:खों से मुक्ति। और उसका अनुभव यहीं पर होता है, उसके बाद वह सिद्धोंवाला मोक्ष सामने आता है! कष्ट उठाने से कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता। आत्मा का खुद का स्वभाव ही मोक्ष स्वरूप है, लेकिन उसका भान नहीं है, इसलिए बंधन अनुभव करता है। वह मुक्त भाव कब अनुभव में आता है? जब 'ज्ञानीपुरुष' खुद की अनंत शक्ति से, अनंत सिद्धि से हमारे आत्मा को झकझोरकर जगाएँ तब? जो खुद मुक्त हैं, वे ही अन्यों को मुक्ति दे सकते हैं। 'ज्ञानीपुरुष' खुद प्रकट मूर्तामूर्त मोक्षस्वरूप हैं और घंटेभर में हमें स्वरूप का ज्ञान अर्थात् आत्मानुभूति करवाते हैं! यही अक्रम मार्ग की सिद्धि है !
कुछ लोग ऐसा मान बैठे हैं कि इस काल में मोक्षमार्ग बंद है और ऐसा मानकर बैठ हुए हैं! हकीकत में मोक्षमार्ग तो खुला ही है, ठेठ मोक्ष के दरवाज़े तक पहुँचा जा सके, ऐसा है। और वह प्रमाणित हो चुका है। हालांकि लाख का चेक इस काल में प्राप्त नहीं हो सकता, लेकिन दादाश्री निन्यानवे हज़ार नौ सो, निन्यानवे रुपये और निन्यानवे पैसे तक का चेक देते हैं, और अनेकों ने वह प्राप्त किया है ! इसमें कितना नुकसान है? एक पैसे का ही न? लेकिन उसके बदले में लाख का छुट्टा मिलता है न?
मोक्षमार्ग खुला है, ढूँढ लेने की ही देर है।
'जिसे छूटना ही है उसे कोई बाँध नहीं सकता, और जिसे बंधना ही है उसे कोई छुड़वा नहीं सकता।'
- दादाश्री बंधन किससे हैं? अज्ञान से बंधता है, वह ज्ञान से ही छूट सकता है। बंधन का मूल कारण अज्ञान है।
दादाश्री ने यथार्थ मोक्षमार्ग खोल दिया है। जहाँ पर 'ज्ञानीपुरुष'
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