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लेकिन वे दोष हों, और तुरंत ही ऑन द मोमेन्ट यह विधि हो जाए, तभी इस काल में काम आएगा। - वीतराग ही वीतराग-विज्ञान अनावृत कर सकते हैं। वीतरागों का अंतर आशय काल के अनुरूप ऐसी स्यादवाद वाणी द्वारा 'ज्ञानीपुरुष' ही अनावृत कर सकते हैं, जिसके प्राप्त होने के बाद सामान्य व्यक्ति भी निरंतर यथार्थ धर्मध्यान में रह सकता है! इच्छा तो सिर्फ मोक्ष के लिए ही करने जैसी है।
'जिसे मोक्ष की ही एकमात्र तीव्र इच्छा है, उसे कोई रोकनेवाला नहीं है। ज्ञानी उनके घर जाएँगे!' ।
"जिसे मोक्ष की इच्छा है, उसे पुद्गल की मालिकी नहीं रहती ! जिसे पुद्गल की मालिकी है, उसे मोक्ष की इच्छा नहीं होती!' - भक्त और भगवान अलग होते हैं! जबकि ज्ञानी में वह भेद नहीं होता है।
भक्ति कब तक करनी है? जब तक ज्ञानी से भेंट नहीं हो जाए तब तक, और 'ज्ञानीपुरुष' मिलें तो उनसे मोक्ष माँग लेनी है। वीतराग की भक्ति मुक्ति दिलवाती है।
'भगवान शब्द का अर्थ क्या है?' इसका स्पष्टीकरण दादाश्री देते हैं।
'भगवान नाम है या विशेषण? यदि नाम होता तो हमें उसे भगवान दास कहना पड़ता, भगवान विशेषण है। जैसे भाग्य पर से भाग्यवान बना है, वैसे ही भगवत् पर से भगवान बना है। ये भगवत् गुण जो भी कोई व्यक्ति प्राप्त करता है उसे 'भगवान' का विशेषण लगता है।' - दादाश्री
सबसे ऊँची भक्ति कौन सी?
'केवलज्ञान स्वभावी आत्मा का लक्ष्य बैठ जाने के बाद उसके जागृतिरूपी ज्ञान में रहना वह, सबसे ऊँची और अंतिम भक्ति है।'
"ज्ञानियों का प्रतिष्ठित आत्मा' भक्ति में है और ज्ञान, ज्ञान में है।
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