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आप्तवाणी-२
रहा है और तू बचाने का अहंकार कर रहा है।' तेरे पिता जी बूढ़े हो गए हैं, उन्हें बचा न! इसे किसलिए बचा रहा है? पिता जी अस्सी साल के बूढ़े हो गए हैं, उन्हें मरने दे रहा है? पिता जी को क्यों मरने देता है? तू बचानेवाला है, हमेशा के लिए बचानेवाला है तो बाप को बचा न! यह तो ज़रूरत से ज़्यादा अक्लमंदी है, इसे ओवरवाइज़-मेडनेस कहा है। इस जगत् के जंजाल में हाथ मत डालना, उसमें कुछ लिमिट तक ही रहना। ये तो ओवरवाइज़ हो चुके हैं, सब कीर्ति के पीछे पड़े हुए हैं। क्या चाहिए इन्हें? कीर्ति। शायद यहाँ पर कीर्ति मिल जाए लेकिन वहाँ उनका बाप अच्छी तरह खबर लेगा, वहाँ पर दरअसल न्याय हो रहा है, वहाँ किसी का कुछ चलनेवाला नहीं है। भगवान ने क्या कहा है कि, 'तू दस गायें बचाने का अहंकार कर रहा है और वह दस गायों को मारने का अहंकार कर रहा है, इसलिए आप दोनों को ही यहाँ पर मोक्ष की बात सुननेकरने नहीं आना है। तुझे बचाने का फल मिलेगा और तुझे मारने का फल मिलेगा। उन जीवों को तूने बचाया है, वे तेरे ऊपर उपकार करके बदला चुकाएँगे और वह जिसने जीवों को मारा है, वे ही जीव उसे दुःख देंगे। यह बस इतना हिसाब है। हम बीच में हाथ नहीं डालते हैं। मोक्ष का और इसका कुछ भी लेना-देना नहीं है।
अब यदि तूने कॉलेज में जिन दो लड़कों को पास किया हो, वे लड़के बड़े होकर कहें कि, 'इन्होंने हमें पास किया था,' तो वे उसका लाभ आपको देते हैं। स्वाभाविक रूप से, वैसा ही इन जीवों को बचाने में भी है। आप जीव बचाओ या नहीं बचाओ भगवान ने उसे मोक्ष के लिए आवश्यक नहीं बताया है। यह तो ज़रूरत से ज़्यादा समझदार हो गए हैं। इतने अधिक समझदार कि गाय बचाने के लिए कसाई के वहाँ से चार सौ-चार सौ रुपये देकर गायें छुड़वा लाते हैं लेकिन फिर क्या उसे उपाश्रय में या मंदिर में थोडे ही बाँधकर रखते हैं ! फिर तो किसी ब्राह्मण को मुफ्त में दे देते हैं कि, 'भाई ले, तू ले जा।' फिर वह कसाई ध्यान रखता है कि ये गाय को किसके यहाँ पर बाँध रहे हैं! वह ब्राह्मण को गाय देते हैं, तब वह कसाई वहाँ से फिर उस ब्राह्मण के पास जाता है, और कहता है, 'अरे, तुम पर कुछ कर्ज़ हो गया है क्या?' तब वह कहेगा, ‘हाँ भाई,