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भावहिंसा
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है।' तो यह दुनिया कोई सिर्फ तेरे बाप की नहीं है। तेरे बाप की दुनिया होती तो कभी का खाली नहीं करवा देता? यह तो कब 'टप' हो जाएगा, उसका क्या ठिकाना? बस इतना ही है कि अहंकार यों ही बदनाम होता है। बिना वजह अहंकार नज़र में आ जाता है, इतना ही है। भगवान ने तो यहाँ तक कहा है कि, 'आपको भावदया रखनी है।' भावदया यानी उन जंतुओं को बचाने की नहीं, उस जीव को मारने का भाव होता है न उससे तुम्हारे आत्मभाव का मरण होता है। अपने आत्मभाव का मरण हुआ इसलिए कहते हैं कि, 'तू अपने भावमरण के लिए दया रखना,' उसे भाव दया कहा है। तू अपनी भाव दया सँभालना, उसका तो वह लेकर आया हुआ है ही। जीवमात्र खुद का सभी कुछ लेकर ही आया हुआ है, स्वतंत्र है। नहीं तो अमरीकावाले इतने सालों तक शीतयुद्ध रहने देते क्या? वे कहते, 'एक घंटे में ही हम पूरा रशिया खाली कर सकते हैं, ऐसा है!'
बचाता है - वह भी अहंकार इसमें तेरी खुद की कुछ भी सत्ता नहीं है, इसलिए तू अपने आप सावधान हो जाना कि तेरे आत्मभाव का मरण नहीं हो। तू दूसरों को मारने की भावना करेगा तो तेरे आत्मभाव का मरण होगा और इसीलिए भावदया रखना। सामनेवाले पर दया रखने को नहीं कहा है। जबकि ये तो सामनेवाले पर दया रखने में पड़ गए हैं! 'अरे पागल, तेरा ठिकाना नहीं है, तो त सामनेवाले पर कैसे दया रखेगा?' उसमें तो वापस अहंकारी बन चुके होते हैं ! 'मुझे बहुत दया आती है, मुझे बहुत दया आती है!' अरे अभागे तू खुद पर ही दया रख न! किस प्रकार का जीव है तू?
भगवान के पास एक कसाई गया और एक संघपति गए। कसाई के हाथों से गायें छुड़वाकर लानेवाले उस संघपति ने कहा, 'साहब मैंने दस गायें छुड़वाई हैं।' तब भगवान कहते हैं, 'आपकी बात सच है कि आपने दस गायों को छुड़वाया।' तब वह कसाई कहता है, 'साहब, मैंने दस गायें मारी। अब हम दोनों में से पहले किसका मोक्ष होगा?' तब भगवान ने कहा, 'मोक्ष की बात किसी को भी नहीं करनी है, आप दोनों अहंकारी हो, आप मोक्ष के लायक नहीं हो। यह मारने का अहंकार कर