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आप्तवाणी-२
चुके थे। सिर्फ खुद के घर की ही पड़ी है, बाकी सब लोगों के घर जल रहे हों तो सोते रहते थे मज़े से। प्रपंची, स्वार्थी ! सभी तरह से तिरस्कारवाले, यूज़लेस हो गए थे।
ब्राह्मण कहते थे कि, 'भगवान का मुख हम हैं और ये क्षत्रिय छाती तक हैं और ये जो सारे वैश्य और शूद्र हैं, वे निम्न हैं।' दुरुपयोग, सिर्फ दुरुपयोग ही किया! जिसका सदुपयोग करना था, उसी का दुरुपयोग किया। हम ब्राह्मण मतलब हम मुखारविंद, इसलिए हम जो कुछ भी कहें उस पर आपको आपत्ति नहीं उठानी है। तो उन्होंने उस पावर, वीटो पावर का उपयोग किया। उसके कारण वे भयंकर यातनाओं में फँस गए। इस प्रजा का तो जो होना होगा वह होगा, लेकिन उस वीटो का उपयोग किया. उस वजह से आज उनके पैरों में चप्पल तक नहीं मिलते! उनकी वेल्यु भी चली गई और चप्पल भी चले गए! दोनों साथ में चले गए! दुराचारों के कारण उनकी दशा तो देखो!
लालची हैं, उसके कारण मार खा रहा है जगत्। लालच क्या होना चाहिए मनुष्य को? लालच दीनता करवाता है और दीनता पैठी कि मनुष्यपन गया।
पुराने जमाने की प्रजा ने निचले वर्ण पर भयंकर अत्याचार किए। उन्हें रास्ते पर से जाना हो तो उन्हें उनकी छाती पर कटोरा और पीछे झाडू बाँधना पड़ता था! कटोरा इसलिए कि थूकना हो तो वे रास्ते पर नहीं थूकें, कटोरे में थूकें। पीछे झाडू इसलिए कि रास्ते पर से उनके पैरों के निशान मिटते जाएँ! ऐसा तो आतंक मचाया! मेरे जैसे हाज़िर जवाब होते न तो सिर फोड़ डाले वैसा जवाब देते कि इन कुत्तों को थूकने की और दूसरी सब छूट, उनके पैरों के निशान चलते हैं और इन मनुष्यों के नहीं चलेंगे? ऐसे कैसे मेन्टल हो गए हो? यह तो एक्सेस हो गया था।
___ बेटियों का जन्म होता तो तुरंत ही उसे 'दूध पीती' कर देते थे, मार डालते थे। राजपूत प्रजा में कैसा? कि बेटी का विवाह करते समय दहेज देना पड़ता था, वह अच्छा नहीं लगता था और मूलतः पढ़े-लिखे नहीं थे, अनपढ़ थे। स्त्रियाँ भी अनपढ़ और पुरुष भी अनपढ़ लेकिन खुद