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________________ २३० आप्तवाणी-२ से उसकी बात करना मूर्खता है, पुनरुक्ति दोष लगता है। यह तो पूरे दिन रोता ही रहता है, कि कप फूट गया! किसी मिल मालिक का जूता खो जाए तो वह, 'जूता खो गया, जूता खो गया' ऐसे करता रहता है। 'अरे! मिलमालिक होकर कहीं जूतों की बात की जाती होगी?' रोज़ एक-एक जूता खो जाए तब भी किसी को कहना नहीं चाहिए। खुद ऐसे सोचना चाहिए कि मेरे पुण्य खराब हो गए, इसलिए ये चोरी हो जाते हैं। बल्कि तुझे तो गुप्त रखना चाहिए। यह तो एक कप फूट गया हो तो भी झगड़े चलते हैं, है न? ऐसा कई जगहों पर आपको देखने को मिला है न? अनंतकाल से लोग पीतल को ही सोना मानकर खरीदते रहे हैं, लेकिन जब बेचने जाएँगे तब पता चलेगा, तुझे कोई चार आने भी नहीं देगा। आपके खुद के दुःख मिटें, तभी समझना कि, यहाँ पर ज्ञानी हैं। लेकिन दु:ख नहीं मिटें तो उस ज्ञानी का हमें क्या करना? अपना दु:ख मिटे नहीं, अपना समाधान हो नहीं, तो उनकी दुकान में बैठे रहने का अर्थ ही क्या है? ये तो बुद्धिवादी के तुक्के हैं, उसका दोष नहीं है। लोग ऐसे हैं, भान ही नहीं है सार-असार का। कीट-पतंगे ऊपर से आ गिरें तो उसमें लाइट क्या करे? यह तो इतनी ऊँची बात मिली और समझ में नहीं आई तो कहेंगे, वहाँ पर चलो। बात ऊँची है, खुद को समझ में नहीं आई इसलिए और कहीं पर चला जाता है। यह तो बुद्धओं की टोली है। बड़े-बड़े बुद्धिशाली बुद्धू बन जाते हैं। प्रश्नकर्ता : मेन्टल हॉस्पिटल कहा, ऐसा ही है न? दादाश्री : हाँ, मेन्टल हॉस्पिटल है, वर्ना क्या मेन्टल हॉस्पिटल कहना अच्छा लगता होगा? अच्छा नहीं लगता। लेकिन बहुत हो जाए तब कह देना पड़ता है कि, 'मेन्टल हॉस्पिटल जैसी दशा है'। मेन्टल हो गए हैं सभी, मेन्टल हॉस्पिटल में रख दिए हों न, वैसे दिखते हैं। सार-असार का भान ही चला गया है। हिताहित का भान तो उसे विचार में ही नहीं आया कि मेरा हित किसमें है और मेरा अहित किसमें है, ऐसा विचार ही नहीं आता। सार-असार का भान नहीं है, हिताहित का भान नहीं है, किसी भी प्रकार का भान नहीं है।
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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