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जगत् - पागलों का हॉस्पिटल
एक व्यक्ति मेरे पास आया था। उसने मुझसे कहा कि, 'मैं आपके दर्शन-वर्शन सब करूँगा, लेकिन मुझे मोक्ष नहीं चाहिए।' तब मैंने कहा, 'ठीक है भाई, हमारे पास भी मोक्ष इतना सस्ता कहाँ है? और तेरे पास भी जो तुझे चाहिए वह है ही न -बंधन!'
हम पागलों के हॉस्पिटल में जाएँ और पागलों की टोली में जाकर कहें, 'एय, हाथ ऊँचा-नीचा मत करना' और इस तरह से इशारा कर रहा हो न तो उसे ऐसा लगता है कि यह पागलों जैसा क्यों कर रहा है? उन्हें समझदार कौन लगता है? उन्हें तो उनके पागल ही समझदार लगते हैं। उनकी भाषा मेल खाती है और उन समझदारों की भाषा उस पागल को अलग लगती है। इसलिए उसे समझदार व्यक्ति पागल लगता है! इसलिए ऐसी जगह पर हमें उनकी भाषा में बात करनी हो तो ही मेन्टल हॉस्पिटल में रहना चाहिए। पूरे वर्ल्ड का कन्वर्जन मेन्टल हॉस्पिटल में हो गया है। मैं १९४२ में कहता था कि धीरे-धीरे वर्ल्ड का कन्वर्जन मेन्टल हॉस्पिटल में हो रहा है। वह एक दिन मेन्टल हॉस्पिटल बन जाएगा! तो आज हमें ऐसा ही लगता है, ये मेन्टल हॉस्पिटल के लोग हैं या क्या? हाँ, वे ही हैं। आप क्या कहते हो और वे क्या कहते हैं। किसी के भी सवाल-जवाब एक्जेक्ट सुनने को नहीं मिलते, ऐसा यह सब पागलों के हॉस्पिटल जैसा हो गया है। तो फिर मेन्टल हॉस्पिटल की बात ही क्या करनी? पूरे दिन लोग पागलपन ही करते रहते हैं न! एक कप फूट गया हो न तो उसके भी झगड़े चलते रहते हैं, उसे मेन्टल हॉस्पिटल कहते हैं। मनुष्य तो कैसा होता है? जो मानवतावादी हो, समझदार हो, वह तो अगर कप फूट जाए
और कोई उस बारे में दोबारा बात करे कि 'आज तो कप फूट गया' तो कहेगा, 'अरे फिर से ऐसी बात नहीं करते।' फूट गया सो फूट गया, फिर