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व्यक्ति लोकपूज्य बन सकता है। वर्ना 'ज्ञानीपुरुष, ' जो कि खुद निर्विशेष पद में होते हैं, उन्हें 'भगवान, ' ऐसा विशेषण देना, वह उपमा देकर उनकी अनुपम ऊँचाई को नीचे गिराने के बराबर है ! फिर भी पहचानने के लिए उन्हें सब भगवान, सर्वज्ञ आदि कहते हैं । सर्वज्ञ मतलब क्या? जो सर्व ज्ञेयों को जानते हैं, वे सर्वज्ञ । सर्वज्ञ दो प्रकार के होते हैं : एक कारण सर्वज्ञ और दूसरे कार्य सर्वज्ञ। भगवान ने 'हो रही' क्रिया को, 'हो चुकी है, ' ऐसा माना है।
उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति घर से बड़ौदा जाने निकला हो और पाँच मिनट में कोई पूछने आए कि, 'भाई साहब कहाँ गए?' तो आप क्या उत्तर दोगे? आप कहोगे कि, 'भाई साहब बड़ौदा गए हैं।' अब भाई साहब तो मुश्किल से स्टेशन भी नहीं पहुँचे होंगे। फिर भी, क्रियावंत हो चुकी क्रिया को भगवान महावीर ने हो चुकी है, ऐसा माना है ! वैसे ही जिनके सर्वज्ञ के कारण सेवित हो रहे हैं, वे कारण सर्वज्ञ ही कहलाते हैं । 'दादा भगवान' कारण सर्वज्ञ हैं ।
जगत् का नियम है कि जिससे दिखनेवाली भूल हो उसकी भूल, लेकिन कुदरत का नियम है कि 'जो भुगते उसी की भूल । '
'किसी को अपने से किंचित् मात्र दुःख हो तो मानना कि अपनी दादाश्री भूल है । '
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'भुगते उसी की भूल' इस नियम के आधार पर जो कोई भी चलेगा, उसे इस जगत् में कुछ भी सहन करने को रहता नहीं है, किसी के निमित्त से किंचित् मात्र दुःख होने को रहता नहीं है। हम अपनी ही भूलों से बंधे हुए हैं और जो खुद की सभी भूलों को मिटा दे, वह खुद ही परमात्मा है! वीतराग सर्व भूल मिटाकर मोक्ष में सिधार गए। हमें भी वही करके छूट जाना है।‘वीतराग' ध्येय स्वरूप हैं और प्रकट ‘ज्ञानीपुरुष' मूल उपादान संयोगी हैं! ‘मेरी भूल नहीं है' ऐसा कहा वही सबसे बड़ी भूल है, उससे भूल पर गाढ़ आवरण आ जाता है । कृपालुदेव कह गए हैं :
'हुं तो दोष अनंतनुं भाजन छु करुणाळ ।'
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