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धर्मध्यान
१२१ उनके पूर्व जन्म का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा और आपको आपके इस जन्म का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। ऐसे प्रतिक्रमण दिन के पाँच सौ-पाँच सौ करेगा, तब मोक्ष में जाएगा।
अब ऐसा धर्मध्यान और ऐसे प्रतिक्रमण तो आजकल उपाश्रय में भी नहीं रहे हैं न? फिर अब क्या हो? नहीं तो फिर भी रो-रोकर तो भुगतना ही पड़ता है न? तो उसके बदले हँसकर भुगते तो क्या बुरा है?
__ यदि इतना ही करो न तो और कोई धर्म नहीं ढूँढोगे तो भी हर्ज नहीं है। इतना पालन करो तो काफी है, और मैं तुझे गारन्टी देता हूँ, तेरे सिर पर हाथ रख देता हूँ। जा, मोक्ष के लिए, ठेठ तक मैं तेरा साथ दूंगा! तेरी तैयारी चाहिए। एक ही शब्द पालन करे तो बहुत हो गया!
अतिक्रमण हुआ तो प्रतिक्रमण करना ही चाहिए। अतिक्रमण तो मन में खराब विचार आएँ, किसी स्त्री के लिए खराब विचार आया, तब फिर 'विचार अच्छा होना चाहिए,' ऐसा कहकर उसे पलट देना। मन में ऐसा लगा कि, 'यह नालायक है,' तो ऐसा विचार क्यों आए? हमें उसकी लायकी और नालायकी देखने का राइट (अधिकार) नहीं है। फिर भी यदि यों ही बोलना हो तो बोलना कि, 'सभी अच्छे हैं।' अच्छे हैं, कहोगे तब तो आपको कर्म का दोष नहीं बैठेगा। लेकिन यदि उसे बुरा कहा तो वह अतिक्रमण कहा जाएगा, इसलिए उसका प्रतिक्रमण अवश्य करना पड़ेगा।
बेटे को मारने का कोई अधिकार नहीं है, समझाने का अधिकार है। फिर भी बेटे को पीट दिया, तब फिर प्रतिक्रमण नहीं करें तो सब (कर्म) चिपकते ही रहेंगे न? प्रतिक्रमण तो होना ही चाहिए न? बेटे को पीट दिया, वह तो प्रकृति के उल्टे स्वभाव के कारण है, क्रोध-मान-मायालोभ के कारण है, कषायों के कारण पीट दिया। कषाय खड़े हो गए इसलिए पीट दिया। लेकिन पीट देने के बाद वापस मेरा शब्द याद रहे कि, 'दादा' ने कहा था कि, 'अतिक्रमण हो जाए तब ऐसा प्रतिक्रमण करो।' तो अगर प्रतिक्रमण करेगा न, तब भी वह धुल जाएगा। तुरंत ही धुल जाएगा, ऐसा है। धर्मध्यान से, बंधा हुआ कर्म छूटता है और नया नहीं