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________________ १२० आप्तवाणी-२ तेल खरीदकर लाते होंगे क्या? महँगे भाव का अरंडी का तेल रोज़ कहाँ से लाएँ? अंदर परिणति बदली कि अरंडी का तेल पीया हो वैसा मुँह हो जाता है ! दोष खुद का और भूल निकालता है औरों की, उससे अंदर की परिणति बदल जाती है। खुद का दोष ढूँढो, वीतराग ऐसा कह गए हैं, और कुछ भी नहीं कह गए हैं। तू तेरे दोषों को पहचान और मुक्त हो जा। बस इतना ही तुझे मुक्तिधाम देगा। इतना ही काम करने को कहा है भगवान ने। और प्रतिक्रमण तो नकद-कैश प्रतिक्रमण करने को कहा है। यह तो उधार प्रतिक्रमण। बारह महीनों में पर्युषण आता है, उस दिन प्रतिक्रमण करते हैं, तब तो नयी नयी साड़ियाँ पहनकर निकलती हैं, उससे बल्कि मूर्छित होकर घूमती हैं। जब प्रतिक्रमण करना था तब उल्टे मूर्छित होकर, नयी साड़ियाँ पहनकर घूमती हैं। ऐसे मूर्छावाले परिणाम को भगवान ने धर्म नहीं कहा है। प्रतिक्रमण का धर्म यदि पकड़ लिया तब अगर तेरे सिर पर गुरु नहीं होंगे तो भी चलेगा। प्रतिक्रमण का धर्म यानी क्या? आपने इनसे कहा कि 'आप खराब हो,' तब आपको प्रतिक्रमण करना पड़ेगा, कि जो मुझे नहीं बोलना चाहिए था, वह बोल दिया। इसलिए भगवान के पास आलोचना करनी चाहिए। वीतराग को याद करके आलोचना करनी चाहिए कि, 'भगवान मेरी भूल हो गई है। मैंने इस भाई को ऐसा कहा इसलिए उसका पछतावा करता हूँ। अब फिर से ऐसा नहीं करूँगा।' 'फिर से नहीं करूँगा,' उसे प्रत्याख्यान कहते हैं। भगवान का आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान, उतना ही पकड़ ले न, वह भी पूरा नकद, उधार नाम मात्र को भी नहीं रहने दे, आज का आज और कल का कल, जहाँ कहीं कुछ भी हो जाए तो वहीं पर नक़द दे दे, तो अमीर बन जाएगा, तब फिर वैभव भोगेगा और मोक्ष में जाएगा! एक ही शब्द पकड़े, इन 'ज्ञानीपुरुष' का एक ही शब्द पकड़ ले तो बहुत हो गया! ठेठ मोक्ष में न ले जाए तो वे ज्ञानी ही नहीं हैं! एक ही शब्द पकड़ ले, ज़्यादा नहीं। अब आपने उन्हें उल्टा कहा तो आपको तो प्रतिक्रमण करना पड़ेगा, लेकिन उन्हें भी आपका प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। उन्हें क्या प्रतिक्रमण करना पड़ता है कि, 'मैंने कब भूल की होगी कि इन्हें मुझे गाली देने का प्रसंद आया?' इसलिए उन्हें खुद की भूलों का प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। उन्हें
SR No.030014
Book TitleAptavani Shreni 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2014
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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