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________________ 48 ] नमस्कार बालावबोध [ गुजराती अपार उल्लास थाइ छइ / तुम्हे माहरइ जि परहुणा थाउ / आपणइ घरि लेई गई / अनेक भक्ति करइ / बेहू घणु काल तिहां रहिआं / एकवार रत्नवती प्रति कुमारश्री कहइ-देखउ अजीतां ताहरइ पूर्वभवनुं भर्तार पुलिंदउ किहांइं जाणीइ नहीं, अनइ योग्य वर पाखइ दुडीइ कन्या काई शोभय नहीं / पछइ एकिसिउ मेली स्वयंवरमंडप मंडावी आपणा मनगमता कहिएक वरनउ पाणिग्रहण करइ कां नहीं ? / पछइ रत्नवती कहइ-जोइ, नर भरतार तां मननी रतिनइ काजिइं कीजइ / ते तु तुझ साह्मउं जोऊतां मझहइ ऊपजइ छइ / तु बीजइ कुणहिं माहरइ काज काई नहीं / तिवारइ कुमार स्त्री पूछइ-ते भवांतरनु पुलिंदउ वर किम ओलखाइ ? ! रत्नवती कहइ-जि को ते भवनुं कीधउं पुण्य माहरं जाणशइ ते सही माहरु पूर्वभवनु पति / तिवारई कुमारस्त्री कहइ-एतलं जाणउं 'पाछिलइ भवि दमसार ऋषीश्वर नुंकार तूंहहूइ सीखविउ हुतु ते स्मरवानई प्रभावि तूं मरी रायनी बेटी हुई / ' ते सांभलीनइ चमत्करी रत्नवती आपणी सखी चंद्रलेखा प्रति कहइ-ए किम ए वात जाणइ ? / चंद्रलेखा कहइस्वामिनी ! जोइतां एहनी गति, वचनचेष्टा, सहु पुरुषना सरखं दीसइ छइ / अनइ एह देखी तुजहूई रति ऊपजइ / तीणइ इसिउं जाणीए, सही ए ताहरु पूर्वभवनु भरतार / किसिइं कारणिं पुरुष- स्वरूप आच्छादी स्त्रीनइ रूपिं आपणपुं देखाडइ छ / तिसई चंद्रलेखा कुमारस्त्री प्रति कहइ-स्वामी ! हवे प्रसाद करी आपणउं स्वभावनुं रूप देखाडउ / तिसई ऊषधीनइ योगई बेहू पुरुषनई रूपि थिआ / रूप देखी सहू को हर्षिया / पछइ चंद्रलेखा कहइ-स्वामी ! जिम रूप प्रकाशिउं; तिम गोत्र कुलादिक प्रकासउ / तिवारइं मित्रइ कुमारतणउं देस, कुल, गोत्र वटेवाहूना वचननउ वृत्तांत संपूर्ण कहिउ / राजाइ वात जाणी हर्षिथिकइ शुभलग्नि मोटे महोत्सवे रत्नवतीनो पाणिग्रहण कराविउ / हस्तिमोचनि अनेक गजेंद्र तुरंगम अर्द्धराज्य दीधउं / राजसिंह कुमार रत्नवती सहित नानाप्रकार भोगसुख भोगवइ छइ / घणउ काल इउ / एकवार पिताई मृगांक राजाई प्रतीहार हाथि लेख मोकलीनइ कहाविउंवच्छ ! हिवइ अम्हे वृद्ध हुआ। राज्य छांडी दीक्षा लेवानी उत्कंठा कर छउं / घणा काल लगइ ताहरा दर्शननी उत्कंठा छइ / तु वहिल आंहां आविजे / पछइ राजसिंह कुमार ससरानइ मोकलावी रत्नवती सहित चतुरंग कटक परिवार मणिमंदर नगर भणी चालिउ / अनुक्रमि पुतुं / पिताहइ प्रणाम कीघउं / सर्व कुटुंब परिवार हर्षिया / राजा चिंतवइ कुमारहूइ राज्य देई हूं आपणुं धर्मकार्य करउं / इसिइं आवी उद्यानपालकि वीनविडं-स्वामी ! उद्यानमांहि गुणसागरसूरि गुरु पाउधारिया / राजा अनिहर्षिउ / राजसिंह कुमार प्रति राज्य स्थापी साते क्षेत्रे वित्त वेची सपरिवार गुरुकन्हलिं गिउ / दीक्षा लेई दुष्कर तप करी देवलोकि पहुतु / राजसिंह राजाई रत्नवती राणी सहित सम्यक्त्व"मूल बार व्रत पडियज्यां / निष्कंटक राज्य अनइ श्रावकधर्म पालइ छइ / नुकारनइ प्रभावि मोटा मोटा वयरी राजा आज्ञा मनाव्या / गाम गाम जिनप्रासाद कराव्या / पृथ्वी जिनमंडित करावी / चिरकाल राज्य पाली एकवार रोगाक्रांत थिकई हूंतइ आपणा पुत्र प्रतापसिंह कुमारहइं राज्य स्थापना कीधी। आपणपइ रत्नवती राणी सहित श्रीगुरुनइ मुखिइं सविस्तरी आराधना कीधी। सर्व जीवराशि खमावी
SR No.023548
Book TitleNamaskar Swadhyay Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1980
Total Pages370
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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