________________ विभाग ] नमस्कार स्वाध्याय [41 यत उक्तं महानिशीथसिद्धान्ते–“तहेव इक्कारस पयपरिच्छिन्न त्ति' इग्यार पदि परिच्छिन्न कहतां सहित छै / "इक्कारस पयपरिच्छिन्न'त्ति आलावगे तित्तीस अक्खरपरिमाणं / .एसो पंचनमुक्कारो, सवपावप्पणासणो / मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम: हवइ मंगलं / / इति चूलं // तेणेव कमेण छट्ठ-सत्तमऽद्वमदिणेसु आंबिलेहिं अहिजिज्जा / " - प्रवचनसारोद्धारेऽप्युक्तम् "पंचपरमिटिमंते पए पए सत्त संपया कमसो / पज्जंतसत्तरक्खरपरिमाणा अट्ठमी भणिआ ॥"-गाथा 68 // यद्यपि ' हवइ' अनइ ‘होइ' कहतां अर्थनउ विभेद कांई छइ नही / तथापि 'हवइ' इसिउ जि कहिवडं / जेह भणी नमस्कार चूलिका ग्रंथमाहिं कहिउँ छइ-जिवारइं कार्यविशेषि ऊपनइ चूलिकातणडं ध्यान करीइ, तिवारई बत्रीसदल कमल रची एकेकउ अक्षर एकेकी पांखुडीइं स्थापी त्रेत्रीसमउ अक्षर मध्य कर्णिकाई स्थापी ध्यान करिवउं / हवइ जउ 'होइ ' इसिउं कहीइ तउ चूलिका बत्रीस जि अक्षर पहुचइ, बत्रीसे अक्षरे बत्रीस पांखुडीइ जि पूराई, मध्यकर्णिका ठाली जि रहइ / इत्यादिक अनेक श्रीसिद्धांतयुक्ति छइं / मध्यस्थ पणई विचारिवउं / एवं श्रीनवकार महामंत्रि 9 पद, 8 संपद, ६८अक्षर, तेहमांहिं 7 भारे, 61 लघु अक्षर / जे बि अक्षर एकठा मिल्या हुई ते भारी कहीइ / जे एकेकलउ अक्षर ते लघु हलूउ; इम सर्वत्र जाणिवउं / एह श्रीनउकारनउ महिमा इम कहि छइ " नवकार इक्कक्खर पावं फेडेइ सत्त अयराणं / पन्नासं च पएणं सागरपणसयसमग्गेणं // 1 // जो गणइ लक्खमेगं पूएइ विहीइ जिणनमुक्कारं / तित्थयरनामगोअं सो बंधइ नत्थि संदेहो // 2 // अट्ठेव य अट्ठसयं अट्ठसहस्सं च अट्ठकोडीओ। जो गुणइ भत्तिजुत्तो सो पावइ सासयं ठाणं // 3 // " - श्रीनउकार भावसहित विधिई जपतां श्रीगुरुदत्त आम्नाय अनइं आस्पानई विशेषिइं करी; इहलोकि अनइ परलोकिं सकल वांछित फल सोझइं / इह लोकि तां देवता सान्निध्य करई / जिम श्रावकनी पुत्रिकाहई कोधउं / अत्र कथा [1] भरतक्षेत्रि पोतनपुर नगर / तिहां सुगुप्त नामिई व्यवहारीउ श्रावक, तेहनइ श्रीमती नामिई बेटी धर्मवंति छइ / एकवार कोएक मिथ्यात्वी श्रेष्ठिनउ बेटउ श्रीमतीनउं रूप देखी व्यामोहिउ / परणिवा वांछइ / पिता कन्हलि मगावइ / पिता मिथ्यात्वी भणी दिह नही / पछइ कपट श्रावक हुई श्रीमतीनउं पाणिग्रहण कीधउं / आपणइ घरि लेई गिउ। तेहनउं कुटुंब सहू मिथ्यात्वी छइ / श्रीमती धरनां सर्व काज काम करइ, पुण एक मिथ्यात्व किमइ न करइ / जिनधर्म करतां भणी सासू नणंद