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________________ (354) . 11. चतुर्विध श्री संघ की दृष्टि से श्री नवकार मंत्र सर्व को एक श्रृंखला में बांधने वाला तथा समान स्तर पर सर्व को पहुँचाने वाला है। ___ 12. चराचर विश्व की दृष्टि से परमेष्ठी पद के आराधक सर्व जीवों को अभय प्रदाता होते हैं। वे सर्वदा सकल विश्व की सुख शान्ति चाहते हैं और उसके लिए उसके सब प्रयत्न निःस्वार्थपूर्वक होते हैं। ___ 13. व्यक्तिगत उन्नति की दृष्टि से किसी प्रकार की साधन सामग्री के अभाव में भी साधक केवल मानसिक बल से सर्वोच्च उन्नति के शिखर पर पहुँचता है। 14. समष्टिगत उन्नति की दृष्टि से, परस्पर समान आदर्श के पूजक बनाकर, सत्श्रद्धा, सद्ज्ञान तथा सच्चारित्र के सत्पथ पर स्थिर रहने का उत्तम बल उत्पन्न करता है। 15. अनिष्टनिवारण की दृष्टि से पंच परमेष्ठी का स्मरण अशुभ कर्म के विपाकोदय को रोक देता है और शुभ कर्म के विपाकोदय को अनुकूल बनाता है। इससे पंचपरमेष्ठी पद के प्रभाव से सर्व अनिष्ट इष्ट रूप में बदल जाते हैं, जैसे कि अटवी महल के रूप में तथा सर्प फूल की माला समान बन जाता है। ___16. इष्ट सिद्धि की दृष्टि से पंच-परमेष्ठी शारीरिक बल, मानसिक बुद्धि, आर्थिक वैभव, राजकीय सत्ता, ऐहिक संपत्ति तथा अन्य भी अनेक प्रकार के ऐश्वर्य, प्रभाव और उन्नति दायक है। क्योंकि उससे चित्त की मलिनता और दोष दूर होकर निर्मलता और उज्ज्वलता प्रगटती है। सर्वोन्नति का बीज चित्त की निर्मलता है और निर्मलता नवकार मंत्र के प्रभाव से सहज रीति से सिद्ध हो जाती है। सर्वोत्कृष्टता नमस्कार महामंत्र के पाँचों पदों में पाँच परम आत्माएँ संयुक्त हैं। कोई अल्पशक्ति नहीं वरन् विश्व की एक नहीं, दो नहीं बल्कि पाँच-पाँच महाशक्तियाँ इसके साथ जुड़ी है। पाँच महाशक्तियों के कारण यह मंत्र पंचगुणा बलवत्ता को धारण किये हुए है। ये शक्तियाँ किसी व्यक्ति पर आधारित नहीं है, गुणवत्ता पर आधारित होने से, विश्व की विराट् आत्म-शक्तियाँ इसमें समाहित होने से, यह अनन्तशक्ति का द्योतक है। इसमें केवल आत्मा और केवल परमात्मा इसके साथ जुड़ा हुआ है। अर्हत् और सिद्ध परमात्मा है। आत्म जागरण में तत्पर, आचार की गंगा में अवगाहन करने वाले आचार्य इसके साथ जुड़े हैं, तो समग्र श्रुतराशि में निमज्जन करके ज्ञान के आलोक को विकीर्ण करने वाले उपाध्याय भी इसके साथ संलग्न है। इसके साथ जुड़े हैं वे साधु या साधक जो परमात्मा का साक्षात्कार
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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