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________________ (353) 2. पंच परमेष्ठी की सर्वदृष्टिता __1. मंत्रशास्त्र की दृष्टि से यह सर्व पाप रूपी विष का नाशक है। 2. योगशास्त्र की दृष्टि से पदस्थ ध्यान के लिए इसमें परम पवित्र पदों का अवलम्बन है। 3. आगम साहित्य की दृष्टि से यह सर्व श्रुताभ्यन्तर है तथा चूलिका सहित वह महाश्रुतस्कंध की उपमा को प्राप्त है। ____4. कर्मसाहित्य की दृष्टि से एक-एक अक्षर की प्राप्ति के लिए अनंतानंत कर्मस्पर्धकों का निवास अपेक्षित है एवं एक-एक अक्षर के उच्चारण से भी अनन्त कर्मरसाणुओं का विगम होता है। 5. ऐहिक दृष्टि से इस जन्म में प्रशस्त अर्थ, काम और आरोग्य की प्राप्ति तथा उसके योग से चित की प्रसन्नता प्राप्त होती है। 6. परलोक की दृष्टि से मुक्ति तथा जब तक मुक्ति न मिले तब तक उत्तम देवलोक एवं उत्तम मनुष्य कुल की प्राप्ति कराता है। परिणामस्वरूप जीव को थोड़े ही काल में बोधि, समाधि और सिद्धि मिलती है। 7. द्रव्यानुयोग की दृष्टि से पहले दो पद अपनी आत्मा का ही शुद्ध स्वरूप है और पश्चात् तीन पद शुद्ध स्वरूप की साधक अवस्था के शुद्ध प्रतीक रूप है। 8. चरणकरणानुयोग की दृष्टि से साधु और श्रावक की समाचारी के पालन में मंगल के लिए और विघ्ननिवारण के लिए उसका बारम्बार उच्चारण आवश्यक है। 9. गणितानुयोग की दृष्टि से नवकार के पदों की नौ की संख्या गणित शास्त्र की दृष्टि से अन्य संख्याओं की अपेक्षा अखण्डता और अभंगता का विशिष्ट स्थान रखता है। इसी प्रकार नव संख्या नित्य अभिनव भावों की उत्पादक भी होती है। नवकार की आठ सम्पदाएँ अनंत सम्पदा को प्रदान कराता है तथा अणिमादि अष्ट सिद्धियों को भी सिद्ध कर देता है। साथ ही नवकार के अडसठ अक्षर अड़सठ तीर्थं स्वरूप बनकर उसका ध्यान करने वालों का तारक बनता है। अनानुपूर्वी से होने वाला श्री नवकार के पदों का परावर्तन चित्तस्थिरता का अमोघ कारण बनता है। ___10. धर्मकथानुयोग की दृष्टि से श्री अर्हदादि पाँच परमेष्ठी के जीवन चरित्र अद्भुत कथास्वरूप है, नमस्कार की आराधना करने वाले जीवों की कथाएँ भी आश्चर्यकारक उन्नति को दर्शाने वाली है एवं ये सर्व कथाएँ सात्त्विकादि रसों का पोषण कराने वाली हैं।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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