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________________ (323) किन्तु जैन परम्परा में वर्ण (रंग) के पाँच प्रकार स्वीकार किये गये हैं-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और शुक्ल अर्थात् काला, नीला, लाल, पीला और सफेद। जो कि रंग चक्षु इन्द्रिय के विषय के रूप में मान्य किये गये हैं। इन रंगों को उचित अनुपात में मिलाने पर दूसरे अन्य रंगों की प्राप्ति होती है। क्योंकि प्रकृति में हमें अनेकशः रंग दृष्टिगत होते हैं, जो कि इन रंगों का ही मिश्रण होता है। किन्तु जो प्राथमिक रंग हैं उनको रंगों के मिश्रण से बनाया नहीं जा सकता है। जब दो रंगों के मिश्रण से तीसरा रंग प्राप्त होता है, तब उन दो रंगों को एक-दूसरे का "पूरक" रंग कहते हैं। उदाहरण स्वरूप जब लाल और हरा मिलाया जाता है तब पीले रंग का निर्माण हो जाता है अतः पीले रंग को नीले रंग का पूरक कहा जाता है। अब हम इन श्वेत, रक्त, पील, नील, कृष्ण वर्ण की विशेष विवेचना करेंगे। इन पंच पदों के साथ पंच वर्षों का चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण, गूढ़ और रहस्यमय है। यह जगत् पौद्गलिक है, भौतिक है। हमारा यह शरीर भी पुद्गलों से निर्मित है। अर्थात् यह भी पौद्गलिक है। पुद्गल के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श ये चार लक्षण हैं। समग्र भू-वलय, समग्र मूर्त संसार इन पौद्गलिक लक्षणों के प्रकंपनों से प्रकंपित है। शरीर से ये वर्ण सन्निकट है। हमारे शरीर से वर्ण का बहुत निकट का संबंध है। ये वर्ण (रंग) शरीर से नहीं अपितु इनका हमारे मन से, आवेगों से, कषायों से भी बहुत बड़ा संबंध है। शारीरिक स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य, मन का स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य, आवेगों की कमी और वृद्धि- ये सब इन रहस्यों पर निर्भर है कि किस प्रकार के रंगों के समायोजन, अलगाव या संश्लेष हम करते है। रंग हमारे चारों ओर हैं। सारा वातावरण ही रंगीन है। रंगों का अपना जगत् , अपनी भाषा और अपना वर्ण्य भी है। रंगों की दुनिया अद्भुत, विचित्र, विलक्षण तो है ही, साथ ही वह युक्तियुक्त और अर्थगर्भित भी है। 'रंग ही जीवन है' यह कथन आत्यन्तिक होने पर भी टाला नहीं जा सकता। आज तो रंगों को लेकर काफी खोजें और विशेष अध्ययन हुए हैं। पश्चिम में तो रंगचिकित्सा एक स्वतंत्र चिकित्सापद्धति रुप में विकसित हुई है। हमारे शरीर का प्रत्येक अंग, प्रत्यंग ही नहीं शरीर का कण-कण रंगों की ही निर्मिति है। ___ नमस्कार महामंत्र में निहित रंगों को उनकी विशिष्टता और विलक्षणता को समझने का प्रयास करेंगे। रंगों का और नमस्कार मंत्र का जो घनिष्ठ संबंध है, उसे आचार्यों ने वैज्ञानिक आधार पर संयोजित किया है, उसका शोधन करके उनको
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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