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________________ (322) प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (6.5 x 10-5 से.मी.) सबसे अधिक और बैंगनी रंग के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य (4.5 x 10 -५से.मी.) सबसे कम होता है। अन्य रंगों के लिए तरंगदैर्ध्य इसके बीच में होता है। विभिन्न तरंगदैर्ध्य की विद्युच्चुम्बकीय तरंगों के आँखों पर पड़ने से रंगों की अनुभूति होती है।' इंद्रिय द्वारा रंगों की अनुभूति ___जब किसी प्रकाशस्रोत से निकलने वाला प्रकाश किसी पदार्थ पर पड़ता है और उससे परावर्तित होकर (या पार जाकर) आँखों पर पड़ता है, तब हमें वह वस्तु दिखाई देती है। सूर्य से प्रसारित होने वाले प्रकाश-तरंग जब पदार्थ में होकर गुजरते हैं, तब उस पदार्थ को स्वयं की विशिष्टता के कारण एक विशेष तरंगदैर्ध्य को छोड़कर शेष सभी उस पदार्थ द्वारा शोषित हो जाते हैं। इस प्रकार जब दूब में से प्रकाश की तरंगे गुजरती है, तब दूब की विशिष्टता के कारण ही हरे रंग को सूचित करने वाली तरंगदैर्घ्य को छोड़डकर शेष तरंगदैर्घ्य वाली सभी तरंगे दूब के द्वारा शोषित (absorbed) हो जाती है। हमारी आँख तक केवल वे ही तरंगे पहुँचती हैं, जिनका तरंग दैर्घ्य हरे रंग को सूचित करता है और इसीलिए हमें दूब हरी दिखाई देती है। यही प्रकाश यदि बिना किसी रूपान्तरण (modification) के हमारी आँखों तक पहुँचे, तो हमें वह वस्तु सफेद दिखाई देती है। उदाहरण के लिए लाल रंग के प्रकाश में देखने पर लाल वस्तु भी सफेद दिखाई देती है। वहीं वस्तु सफेद प्रकाश में लाल और नीले प्रकाश में काली दिखाई देती है। ___ सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और नोबल-पुरस्कार विजेता प्रो. सी. वी. रामन ने रंग की प्रक्रिया गहन शोध-कार्य किया है। उन्होने भी इस कथन की पुष्टि की है। किसी भी पदार्थ का रंग तीन बातों पर निर्भर होता है-1. आपतित प्रकाश की प्रकृति 2. पदार्थ द्वारा शोषित प्रकाश 3. विभिन्न रंगों की अनवशोषित प्रकाश किरणें / इन तीनों ही के कारण से आँख पर उत्पन्न अनुभूति ही पदार्थ का रंग है। प्राथमिक और पूरक रंग ___ प्रकृति में पाए जाने वाले समस्त रंग तीन प्राथमिक रंगों लाल, पीला और नीले से मिलकर बनते हैं। सामान्यतया ये तीनों रंग प्राथमिक स्वीकार गए हैं। 1. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 13 3. वही 5. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 15 2. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ. 14 4. प्रेक्षा-ध्यान : लेश्या ध्यान पृ.१४
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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