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________________ (303) 1. मनोगुप्ति मन के विचारों का गोपन करना, कैसे विचार? अशुभ, कुत्सित, अप्रशस्त विचारों से मन को दूर करना मनोगुप्ति है। ये अशुभ विचार कौन से हैं? संरंभ, समारम्भ और आरंभ में प्रवृत्ति करते हुए मन को साधु यतनापूर्वक हटा लेंवे।' संरंभ अर्थात् मानसिक संकल्प, समारम्भ अर्थात् मानसिक ध्यान या विचार आरम्भ अर्थात् क्रिया के लिये प्रारम्भ करने का विचार करना आरम्भ है। इन तीनों अशुभ विकल्पों से मन को हटाना चाहिये। __ मन के विचारों की यह प्रवृत्ति सत्य, असत्य मिश्र और अनुभव होती है। (1) सत्य मनोगुप्ति-सद्भूत पदार्थ में प्रवर्तमान मन की प्रवृत्ति को रोकना, (2) असत्य मनोगुप्ति-मिथ्या पदार्थों में प्रवर्तमान मन की प्रवृत्ति को रोकना। (3) सत्यमृषा मनोगुप्ति-सत्य और असत्य से मिश्रित मन के विचारों को रोकना (4) असत्यमृषा मनोगुप्ति-सत्य, असत्य एवं सत्यासत्य से रहित मन के विचारों को रोकना। इस प्रकार साधु को दूषित वृत्तियों से मन को रोककर रखना, मनोगुप्ति है। 2. वचन गुप्ति असत्य भाषा के साथ कर्कश, अहितकर, हिंसा युक्त वाणी को रोकना वचन गुप्ति है। वचन के संरंभ, समारम्भ एवं आरम्भ सम्बन्धित व्यापार को रोकना, साथ ही असत्य न बोलना, चुगली न करना, विकथा न करना, मौन रहना वचन गुप्ति है। नियमसार में स्त्रीकथा, राजकथा, चोरकथा, भोजनकथा आदि वचन की अशुभ प्रवृत्ति एवं असत्यवचन के परिहार को भी वचनगुप्ति कहा गया है। तात्पर्य यही है कि साधु अशुभ प्रवृत्ति युक्त वचन का पूर्णतः निरोध करे। मनोगुप्ति की भांति ही वचन गुप्ति के भी 1. सत्यवाक् 2. मृषावाक् 3. सत्यमृषावाक् 4. असत्यमृषावाक् ये चार प्रकार है। 1. उत्तरा. 24.21 2. वही 24.20 3. उत्तरा 24.23 4. नियमसार 67 5. उत्तरा. 24.22
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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