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________________ (302) आहार-न खाने योग्य आहार, उपधि-जीर्णवस्त्रादि उपधि, देह-मृतदेह अथवा इसी प्रकार की अन्य वस्तुएँ आदि को यतनापूर्वक परठे-विसर्जन करे। इन वस्तुओं को ऐसे स्थान पर डाले कि जिससे व्रत का भंग भी न हो और न ही लोगों को घृणा हो। इन शारीरिक मलों का किस स्थंडिल (स्थान) में परठे (डाले) उसके लिए चार भंगों का निर्देश किया गया है। 1. अणावायमसंलोए-जहाँ कोई आता भी न हो और देखता भी न हो। 2. अणावाए होइ संलोए-जहाँ आता तो कोई नहीं किन्तु दूर खड़ा हुआ देखता हो। 3. आवासमसंलोए-जहाँ कोई आता तो है, परन्तु देखता नहीं। 4. आवाए संलोए-जहाँ कोई आता भी है और देखता भी है। उपर्युक्त चार भंगों में से पहला भंग शुद्ध है शेष तीन भंग अशुद्ध हैं। इस प्रकार साधु यत्र-तत्र शारीरिक मलों को न डालकर जहाँ आवागमन न होता हो, ऐसे स्थान पर प्रतिस्थापन करे। इस प्रकार संक्षेप में पाँच समिति का कथन करके अब तीन गुप्तियों का विवेचन करेंगे। तीन गुप्ति _ 'गोपन' से गुप्ति शब्द व्युत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ होता है-दूर करना, खींच लेना। एक अन्य अर्थ भी इसका प्रचलित है, ढकनेवाला या रक्षा-कवच। मन, वचन और काया के साथ जब गुप्ति का योग होता है, तब इसका अर्थ हो जाता है-मन-वचन-काया की अशुद्ध प्रवृत्तियों से रक्षा, आत्मा की अशुभ से रक्षा एवं कुशल प्रवृत्तियों में संयोजन। जब तक असम्यक् प्रवृत्ति से निवृत्ति नहीं होती, वहाँ तक कोई भी प्रवृत्ति सम्यक् नहीं हो सकती। प्रस्तुत दृष्टि से सम्यक् प्रवृत्ति में गुप्ति होना अनिवार्य है। गुप्तियाँ तीन हैं - 1. मनोगुप्ति 2. वचन गुप्ति 3. काय गुप्ति 1. वही 24.15 2. वही 24.16 3. उत्तराध्ययन 24.21 4. स्थानांग वृत्ति पत्र 105-106 5. उत्तराध्ययन 24.1-2
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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