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________________ (294) संवर भावना 4. रसनेन्द्रिय संवर भावना 5. स्पर्शनेन्द्रिय संवर भावना। ये पांचों ही भावनाएँ इंद्रियों के विषयों की आसक्ति का निषेध करती हैं। साधु के अन्तर्मानस में परिग्रह के प्रति आकर्षण को इन भावनाओं के सतत-चिन्तन से दूर किया जा सकता है। परिणामस्वरूप साधु अल्प या बहुत, छोटा या बड़ा, सजीव या निर्जीव पदार्थों पर ममत्व नहीं रखता। सव्वाओ राईभोअणाओ वेरमणं (रात्रि भोजन परित्यागवत) __साधु के पंच महाव्रतों के पालन के साथ साथ छठाव्रत रात्रि भोजन परित्याग का है। उपर्युक्त पांच महाव्रत हैं और यह छठा व्रत है। पांचों विरमण के साथ सम्मिलित करके छठे व्रत के दशवकालिक सूत्र में 'वयछकं छः व्रतों का उल्लेख किया गया है। एतदर्थ पंचमहाव्रतों को मूलगुण तथा रात्रि भोजनविरमण व्रत को उत्तरगुण गिना गया है। दिगम्बर परंपरा में इसे मूलगुण रूप में मान्य किया गया है। इस प्रकार साधु सम्पूर्णतः रात्रि भोजन का परित्याग करता है। वास्तव में इस व्रत का पालन साधु अंहिसा महाव्रत एवं संयम की रक्षा हेतु करता है। ___ दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है कि मुनि सूर्यास्त हो जाने पर सभी प्रकार के आहार आदि भोगों की इच्छा मन से भी न करे। महापुरुषों ने इसे नित्य-तप का साधन कहा है जो रात्रिभोजन नहीं करते, क्योंकि रात्रि में आहार करने से अनेक सूक्ष्म जीवों की हिंसा की संभावना रहती है। पृथ्वी पर ऐसे सूक्ष्म, त्रस, स्थावर जीव व्याप्त रहते हैं, कि रात्रि भोजन में उनकी हिंसा से बचा नहीं जा सकता। इस व्रत में अंहिसा की विराट दृष्टि रही हुई है। इसी कारण साधु को रात्रिभोजन का निषेध किया गया है। आचार्य अमृतचंद्र ने इस व्रत विषयक दो आपत्तियाँ प्रस्तुत की हैं-1. दिन की अपेक्षा रात्रि में भोजन के प्रति तीव्र आसक्ति रहती है और ब्रह्मचर्य महाव्रत का निर्विघ्न पालन भी नहीं हो सकता। 2. रात्रि भोजन से भोजन-पकाने अथवा प्रकाश के लिए अग्नि प्रदीप्त करने पर अनेक जंतु जल जाते हैं तथा भोजन में गिरते हैं, अतः रात्रि भोजन हिंसा से मुक्त नहीं है। . 1. दश. नियुक्ति. 268 2. उत्तराध्ययन 19 3. दश. 6.23-26 4. पुरुषार्थसिद्धयुपाय 132
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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