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________________ (275) इन चारों प्रकार की हिंसा में से गृहस्थ केवल संकल्पी हिंसा का त्यागी होता है, जबकि साधु को चारों प्रकार की हिंसा त्याज्य है। अहिंसा महाव्रत की भावना प्रवृत्ति-निवृत्ति के तीन स्रोत हैं-मन, वचन और काया। ये स्रोत शुभ एवं अशुभ दोनों ओर गति करते हैं। शुभ और अशुभ में प्रवृत्त करने वाली भावना है। भावना के माध्यम से अशुभ प्रवृत्ति को शुभ में तथा शुभ को अशुभ में बदला जा सकता है। इस प्रकार भावना के परिष्कार हेतु सदैव सतर्क एवं सावधान रहना चाहिए। अहिंसा महाव्रत की पाँच भावनाएँ हैं, जो कि महाव्रत के परिपालन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अहिंसा का पालन यह जीवन का व्रत-महाव्रत नहीं अपितु संस्कार है। जीवन के हर पहलू में इन संस्कारों की छाप होनी चाहिये। ये भावनाएँ इनको परिपुष्ट बनाने तथा सुरक्षा के लिए उपयोगी है। आचाराङ्ग सूत्र में एवं तत्त्वार्थ सूत्र में अहिंसा महाव्रत के सम्यक् पालन के लिए पाँच भावनाओं का विधान है। उसी प्रकार प्रश्न व्याकरण सूत्र में ये पाँच भावनाएँ प्राणातिपात विरमण रूप में हैं। महाव्रत की रक्षा हेतु भावना रूपी पाँच प्रहरी खड़े किये गये हैं। ये भावनाएँ निम्न हैं 1. ईर्यासमिति भावना 2. मनःसमिति भावना 3. वचन समिति भावना 4. एषणासमिति भावना 5. आदान-निक्षेपण समिति भावना 1. ईर्या समिति भावना-यहाँ ईर्या का अर्थ है-चर्या। गमनागमन ही नहीं अपितु सोना, उठना, बैठना, जागना आदि सभी का समावेश इसमें किया गया है। साधु को प्रत्येक प्रवृत्ति सावधानी के साथ करनी चाहिये। ईर्या समिति की भावना से अहिंसा साकार होती है। 2. मनः समिति भावना-मनःसमिति से तात्पर्य है, मन को सम्यक् चर्या में लगाना। मन की कुशल प्रवृत्ति मनःसमिति है। मनःसमिति भावना हमारे मन - 1. आचा. 2.15. 179, तत्त्वार्थ सूत्र 7.3 2. प्रश्नव्याकरण संवरद्वार 1.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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