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________________ (274) समारम्भ-मन में जो हिंसक विचार उद्भूत हुए, उन विचारों को मूर्त रूप देने हेतु हिंसक शास्त्रास्त्रों का संग्रह करना, उनको व्यवस्थित रूप से रखना समारंभ है। ___ आरम्भ-मानसिक या वैचारिक जो योजना निर्मित की गई हो, उस योजना के अनुसार शास्त्रास्त्रों का उपयोग करना आरम्भ है। यहाँ स्पष्ट झलकता है कि हिंसा का जन्म सर्वप्रथम मन में होता है, फिर वचन में आता है और उसके बाद शरीर द्वारा आचारण में। आचार्य अमृतचन्द' ने इन तीन प्रकारों को अन्य रीति से प्रस्तुत किया है कि "जब मन में कषाय उद्भूत होते हैं, तो सर्वप्रथम शुद्धोपयोग रूप, भावप्राणों का घात होता है। यह प्रथम हिंसा है।" उसके पश्चात् कषाय की तीव्रता से दीर्घ श्वासोच्छवास, हस्त-पाद आदि से अपने अंगोपांगो को कष्ट पहुँचता है, यह दूसरी हिंसा है। तत्पश्चात् मर्मभेदी कुवचनों से लक्ष्यपुरुष के अतरंग मानस को पीड़ा पहुँचाई जाती है। यह तीसरी हिंसा है। फिर तीव्र कषाय व प्रमाद से उस व्यक्ति के द्रव्यप्राणों को नष्ट करता है-यह चतुर्थ हिंसा है। हिंसा के चार विभाग अन्य दृष्टिकोण से हिंसा के चार विभाग भी किये गये हैं-1. संकल्पी हिंसा, 2. आरम्भी हिंसा 3. उद्योगी हिंसा 4. विरोधी हिंसा। मारने की भावना से जानबूझ कर किसी प्राणी का वध करना, आघात पहुँचाना, परस्पर लड़ाना, बंधन में बांधना, नष्ट करना यह संकल्पी हिंसा है। __ 2. विभिन्न कार्यों के करते समय की जाने वाली हिंसा। यथा भोजन निर्माण करते समय, सफाई करते समय, वस्त्रादि का प्रक्षालन या अन्यान्य कार्य करते समय होने वाली हिंसा, आरम्भी हिंसा है। 3. व्यक्तियों के पालन पोषण हेतु, सामाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्व को निभाने के लिये व्यापार, उद्योगों आदि में होने वाले हिंसा उद्योगी हिंसा है। 4. राष्ट्र पर शत्रु का आक्रमण होने पर या शील रक्षा हेतु, समाजविरोधी तत्त्वों की रक्षा हेतु जो युद्ध या संघर्ष होते हैं, उनमें होने वाली हिंसा विरोधी हिंसा है। 1. पुरुषार्थ सिद्धि. 43
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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