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________________ (252) (क) समाचारी: विशिष्ट क्रियाएँ समाचारी जैन संस्कृति का पारिभाषिक शब्द हैं। वह विशेष क्रिया कलाप जो साधुओं के लिए मौलिक नियमों की भांति विशेष रूप से पालन करने होते हैं, वे समाचारी कहे जाते हैं। सम्यक् दिनचर्या भी इसका अर्थ हो सकता है। भगवती', स्थानांग', उत्तराध्ययन, में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। यह दस प्रकार की कही गई है। इसे दसविध चक्रवाल समाचारी भी कहा जाता है। __ 1. आवश्यकी-साधु आवश्यक कार्य से ही अपने उपाश्रय (निवास स्थान) से बाहर जावे, अन्यथा अनावश्यक आवागमन न करे। 2. नैषेधिकी-आवश्यक कार्य को करने के पश्चात् निवृत्त होकर आने पर नैषिधिकी का उच्चारण करे यह स्थान प्रवेश का द्योतक है। 3. आपृच्छा-अपना कोई भी कार्य हो, गुरुजनों से पूछना, उनका आदेश निर्देश लेना यह आपृच्छा समाचारी है। ___4. प्रतिपृच्छा-दूसरे के लिए पूछना प्रतिपृच्छा है अथवा पुनः दूसरी बार पूछना प्रतिपृच्छा है। 5. छन्दना-अपने द्वारा लाये हुए आहार, वस्त्र आदि को आचार्य, ज्येष्ठश्रमण गुरुजन आदि को आमन्त्रण देना। बाल, ग्लान, शैक्ष आदि को ग्रहण करने तथा उपभोग करने को आमन्त्रित करना, छन्दना है। अकेला-चुपचाप उसका उपभोग न करें। 6. इच्छाकार-साधुओं की इच्छानुसार तदनुकूल आचरण करे। ___7. मिच्छाकार-स्खलना होने पर, गलती होने पर उसका पश्चात्ताप करे, "मिच्छामि दुक्कड़म्" कहे एवं नियमानुसार प्रायश्चित ग्रहण करे। 8. तथाकार-इसे 'प्रतिश्रुत तथ्यकार' भी कहते हैं। आचार्य, गुरु एवं रत्नाधिक (अपने से बड़े) की आज्ञा स्वीकारना। उनके कथन पर विश्वास करना। 9. अभ्युत्थान-गुरुजनों का विनय करना, आने पर खड़ा होना, सेवा शुश्रूषा करना अभ्युत्थान है। इसी प्रकार सत्कार सम्मान भी अभ्युत्थान है। 1. भगवती 25.7 2. स्थानांग 10.749 3. उत्तराध्यय 26 4. वही 26.2-7
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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