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________________ (224) श्री साध परमेष्ठी के संबंध में उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी महाराज श्री पंचपरमेष्ठी गीता' में उल्लेख करते हैं-"निरन्तर, क्लेशनाशिनी देशना देने में जो प्रयास गिनते नहीं तथा भव्यआत्माओं के आश्वासन लेने के लिए वे स्थिरद्वीप की भाँति है। स्वयं साधना करके तिर जाते हैं एवं अन्यों को भी तारने में तत्पर रहते हैं, ऐसे करुणासभरसुखकर साधुपुरुष निरन्तर करुणाशील होने से तथा गुण एवं महिमा के भंडार होने से वे जंगमतीर्थ तुल्य हैं एवं जगत् में बारम्बार धन्यवाद के पात्र हैं।" साधु : अर्थ एवं पयार्य साधु शब्द 'साध्' धातु को 'उण्' प्रत्यय लगने से निष्पन्न होता है, जिसका तात्पर्य है-जो इच्छित अर्थ को साधे वह साधु है। प्राकृत भाषा में "रव-घ-थध-भाम्" 811 187 / इति धस्य हः इस प्रकार 'साहु' शब्द प्रयुक्त होता है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है शोभन' अथवा निर्दोष इसका व्युत्पत्ति परक अर्थ प्रस्तुत किया गया है___ 1. साधयन्ति ज्ञानादिशक्तिभिर्मोक्षमिति साधवः -अर्थात् ज्ञानादि शक्तियों द्वारा जो मोक्ष की साधना करे वह साधु है। . 2. अथवा समता वा सर्वभूतेषु ध्यायन्तीति निरूक्तिन्यायात् साधवः' -अथवा सर्व प्राणियों के प्रति समभाव का जो ध्यान करते हैं वे साधु हैं। 3. अथवा सहायकं वा संयमकारिणां धारयन्तीति साधवः निरूक्तेरेव - अथवा संयम पालन करने वाली आत्माओं को सहायता करते हैं इससे साधु कहलाते हैं। ___4. अथवा साधयति सम्यग्दर्शनादियोगैरपवर्गमिति साधुः जो सम्यग्दर्शनादि योगों द्वारा मोक्ष को साधते हैं, वे साधु है। 5. अभिलषितमर्थं साधयतीति साधुः - जो सम्यग्यदर्शनादि योगों द्वारा मोक्ष को साधते हैं, वे साधु हैं। 1. परमेष्ठी गीता.१ 3. द्वावि.११ द्वा. 5. वही. 1.1, दशा. 1 अ, आव 4. अ. सूत्र. 2.5 7. 4. दश. वृ. 1.1, उत्तर. 1, चं. प्र. 11 पा. 2. सूत्र 2.1, 2.2 4. 1. भगवती वृ. 1.1 6. वही. 1.1 8. आव म. 1.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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