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________________ (223) संयत, अनिदान, कायोत्सर्गी, परीषह विजेता, श्रमणभाव में रत, उपधि में अनासक्त है, जो अज्ञातकुलों में भिक्षा लाने वाला, क्रय-विक्रय तथा सन्निधि से विरत, सर्वसंग-रहित, असंयमी जीवन का अनाकांक्षी, वैभव, आडम्बर, सत्कार, पूजा, प्रतिष्ठा आदि में बिल्कुल निस्पृह है। जो स्थितप्रज्ञ है, आत्मशक्ति के विकास के लिए तत्पर है, समिति गुप्ति का पालक, अष्टविध मद से दूर एवं धर्मध्यान आदि में रत है, स्वधर्म में स्थिर है। शाश्वत हित में सुस्थित, देहाध्यास-त्यागी और शूद्र हास्यचेष्टाओं से विरत है। छेदनविद्या स्वर विद्या, भूकम्प, अंतरिक्ष, स्वप्न, लक्षण, अंगविचार और पशु-पक्षियों की बोली से आजीविका नहीं करता। मंत्र, विविध वैद्यप्रयोग, धूमयोग, अंजनस्नान, आतुरता, माता-पिात का शरण चिकित्सा इनको ज्ञान से हेय जानकर छोड़ देते हैं, वह भिक्षु है। प्रस्तुत अध्ययन में भिक्षुचर्या एवं भिक्षुके स्वधर्म और सद्गुणों से संबंधित समग्र चिन्तन विशुद्ध रूप से अंकित किया है। इस अध्ययन का प्रतिपाद्य ही सद्भिक्षु या आदर्शभिक्षु है। इस प्रकार परिपूर्ण रूप से साधुपद की सुंदर विवेचना प्रस्तुत की गई है। साधु-लक्षण अत्यन्त, कष्टकारी, उग्रतर और घोर तपश्चरणादि अनुष्ठानों के द्वारा, अनेक व्रत, नियम, उपवास व विविध प्रकार के अभिग्रह से युक्त, संयम पालन करने से तथा सम्यक् प्रकार से परीषह उपसर्गादि कष्टों का सहन करके जो सर्व दुःखों का अंत करने वाले मोक्ष को साधताहै, वह साधु है।' निर्वाणसाधक योग को साधने से और सर्व प्राणियों के प्रति आत्मसम्मान बुद्धि को धारण करने से साधु भगवन्त भाव साधु कहलाते हैं। वे विषय सुख से निवर्तित होते हैं तथा विशुद्ध चारित्र और नियमों को धारण करते हैं, तात्विक गुणों को सिद्ध करते हैं तथा मुक्ति साधक पुरुषों को उनकी साधना में सहाय करते हैं। लोक संज्ञा के त्यागी, क्षमादि दशविध धर्म के धारक तथा लाभालाभ, मानापमान एवं लोष्ठ-कांचन में समवृत्ति रखने वाले, गुर्वाज्ञा में तत्पर, प्रायश्चितादि जल द्वारा पापमल का प्रक्षालन करने वाले, निरन्तर शुद्ध स्वाध्यायकरण में तल्लीन और भ्रमर के सदृश गोचरचर्या में उद्यत श्री साधु भगवंत जंगम तीर्थ है। 1. दश. अध्यय. 10 गा. 1-21 2. उत्तरा अध्य. 15 गा. 1-16 3. 3. महानिशीथसूत्र 4. आव. नि. गा. 1010 5. वही.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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