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________________ (187) यदि आचार्य ने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो तो शिष्य को चाहिये कि संघ आचार्य को दण्ड न करे या हल्का दण्ड दे। ____ आचार्य से पूछे बिना वह कुछ भी कार्य न करे। यदि आचार्य रोग आक्रान्त हों तो जीवनभर उनकी सेवा करनी चाहिए।' आचार्य के कर्त्तव्य उपाध्याय को शिष्य से अच्छा बर्ताव करना चाहिए। उस पर अनुग्रह करना चाहिये, उपदेश देना चाहिए। आहार, वस्त्र, पात्र की व्यवस्था करनी चाहिये। यदि शिष्य रोग से आक्रान्त हो जावे तो जिस प्रकार शिष्य आचार्य की परिचर्या करता था, उसी प्रकार आचार्य को भी शिष्य की सेवा करनी चाहिये। शिष्य का कुछ अपराध हुआ हो तो संघ उसे क्षमा करे अथवा अल्पदण्ड दे, ऐसी व्यवस्था आचार्य को करनी चाहिये। आचार्य का अधिकारी ___ संघ में कम से कम जो दस वर्ष से हो तथा जिसमें शिष्यों की देखभाल करने की शक्ति हो, वही आचार्य का अधिकारी हो सकता है। आचार्य का चयन भी तभी होता था, जब उपाध्याय प्रवास में गए हों, अथवा मरण हुआ हो, उन्होंने भिक्षुत्व का त्याग किया हो, तभी शिष्य आचार्य का चयन करते थे। इस प्रकार बौद्ध परम्परा में आचार्य पद का उल्लेख किया गया है। उपर्युक्त सन्दर्भो से विदित होता है कि यहाँ आचार्य का मात्र उद्देश्य होता है शिष्य में संस्कारों का आरोपण। शिष्यों की देखभाल करना ही उनका कर्त्तव्य होता है, अन्य नहीं। साथ ही आचार्य का चयन भी शिष्य ही करते हैं, संघ या स्वयं बुद्ध भी इस दिशा में कुछ गठन नहीं करते। संघ संचालन का भार उनके स्कंधों पर नहीं। न ही उनमें विशिष्ट गुणों का होना ज्ञापित किया है, मात्र दस वर्ष की अवधि होना, एवं शिष्य की परवरिश करना ही उनका कार्य है। तात्पर्य यह निकलता है कि बौद्ध परम्परा में मात्र शिष्य की शिक्षा-दीक्षा के लिए ही आचार्य का निर्माण हुआ है। 1. वही 2. आचारिवत्तकथा-विनयपिटक-महावग्ग 1.2.1, चुल्लवग्ग-८.५.४ 3. वही. 4. वही
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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