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________________ (184) प्रत्येक कार्य में प्रवृत्त होकर अपने बल, वीर्य, पराक्रम को स्फुरित करते हैं तथा अन्यों के वीर्योल्लास में वृद्धि कराते हैं। इस प्रकार आचार्य भगवन्त अपने वीर्यपुरुषार्थ को वेगवान् बनाकर धर्मजागृति लाते हैं। इन पंचाचारों के धारक आचार्य भगवन्त स्वयं इनका पालन करते हैं तथा अन्य प्राणियों को पालन करने हेतु प्रवृत्त करते हैं। आचार्य विषयक इतर दर्शनों की विचारणा वेदों में आचार्य श्रमण परम्परा में आचार्य पद का माहात्म्य अनूठा है। ब्राह्मण परम्परा में इस पद की गरिमा का गुणगान किस प्रकार हुआ है? चतुर्वेदों में से मात्र अथर्ववेद में इस पद का उल्लेख प्राप्त होता है। ___ अथर्ववेद में आचार्य का उल्लेख गुरु के लिए किया है, जो कि ब्रह्मचारी द्वारा पोषित होता है। और उपनयन करने वाला आचार्य उस ब्रह्मचारी को विद्यामय शरीर के गर्भ में स्थापित करता हुआ, तीन रात तक ब्रह्मचारी को अपने उदर में रखता है। यहाँ पर यह भी उल्लिखित है कि "पृथिवी और आकाश के उत्पादक आचार्य की भी ब्रह्मचारी रक्षा करता है। पृथिवी लोक में आचार्य के हृदय रूप गुहा में एक वेदात्मक निधि है। उपर्युक्त कथनों से स्पष्ट होता है कि आचार्य ब्रह्मचारी से पोषित ही नहीं, वरन् उनसे रक्षित भी होते हैं / एवं आचार्य उस ब्रह्मचारी को विद्याध्ययन कराते है। वे आचार्य पृथिवी और आकाश के उत्पादक है। साथ ही उल्लेख है कि "उपनयन करने वाले आचार्य" इससे तात्पर्य यह निकलता है कि विधि विधान करने वाले आचार्य, संस्कार करने वाले आचार्य भिन्न-भिन्न होते हैं। इस प्रकार आचार्य भी अनेक प्रकार के होने चाहिये। इसी अथर्ववेद में आचार्यप्रवर के लिए तो यहाँ तक कथन है कि आचार्य ही मृत्यु हैं, वही वरूण हैं, वही सोम हैं। दुग्ध, ब्रीहि यव और औषधियाँ आचार्य की कृपा से ही प्राप्त होते हैं / अथवा यह स्वयं ही आचार्य हो गए हैं। 1. अथर्व. 11.3.5.1 2. वही 11.3.5.3 3. वही 11.3.5.8 4. वही 11.3.5.10
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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