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________________ (137) अवगाहना अन्तिम भव में दीर्घ या हस्व-लम्बा ठिगना, बड़ा छोटा जैसा भी आकार होता है, उसमें तिहाई भाग कम में सिद्धों की अवगाहना-अवस्थिति या व्याप्ति होती है। सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना तीन सौ तैंतीस धनुष तथा तिहाई धनुष (बत्तीस अंगुल) होती है। मध्यम अवगाहना चार हाथ तथा तिहाई भाग कम एक हाथ (सोलह अंगुल) होती है। जघन्य-न्यूनतम अवगाहना एक हाथ तथा आठ अंगुल होती है। (वास्तव में) सिद्ध अन्तिम भव की अवगाहना से तिहाई भाग कम अवगाहना युक्त होते हैं / जो वार्धक्य (बुढ़ापा) और मृत्यु से विप्रमुक्त हो गई है। उनका संस्थान-आकार किसी भी लौकिक आकार से नहीं मिलता। जहाँ एक सिद्ध हैं, वहाँ भव क्षय (सांसारिक आवागमन के नष्ट हो जाने) से मुक्त हुए अनन्त सिद्ध हैं, जो परस्पर अवगाढ़-एक दूसरे से मिले हुए हैं। वे सब लोकान्त-लोकाग्र भाग का संस्पर्श किए हुए हैं। (एक-एक) सिद्ध समस्त आत्म प्रदेशों द्वारा अनन्त सिद्धों का सम्पूर्ण रूप से संस्पर्श किए हुए हैं। यों एक सिद्ध की अवगाहना में अनन्त सिद्धों की अवगाहना है-एक में अनन्त अवगाढ़ हो जाते हैं और उनसे भी असंख्यातगुण सिद्ध ऐसे हैं जो देशों और प्रदेशों से कतिपय भागों से -एक-दूसरे से अवगाढ़ हैं। तात्पर्य यह है कि अनन्त सिद्ध तो ऐसे हैं जो पूरी तरह एक दूसरे में समाये हुए है और उनसे भी असंख्यात गुणित सिद्ध ऐसे हैं जो देशों और प्रदेशों सेकतिपय अंशों में एक दूसरे में समाए हुए हैं। अर्मत्त होने के कारण उनकी एकदूसरे में अवगाहना होने से किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती। सिद्धों का लक्षण सिद्ध शरीर रहित, जीवधन सघन अवगाह रूप आत्म प्रदेशों से युक्त तथा दर्शनोपयोग एवं ज्ञानो-पयोग में उपयुक्त हैं। यों साकार-विशेष उपयोग-ज्ञान तथा अनाकार-सामान्य उपयोग-दर्शन-चेतना सिद्धों का लक्षण है। 1. वही 170-175 2. वही 176-177 3. वही 178
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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