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________________ (133) जिसे प्रार्थना अर्पित की जाती है अर्थात् परम तत्त्व। ब्रह्म शब्द "ब्रह्म" धातु से व्युत्पन्न होता है जिसका अर्थ है बढ़ना या फूट पड़ना। ब्रह्म वह है जिसमें से सम्पूर्ण शक्ति और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है या जिसमें से ये फूट पड़े हैं। विश्व की उत्पत्ति, स्थिति, विनाश का कारण ब्रह्म है। छान्दोग्य उपनिषद् में उसकी परिभाषा में "तज्जलान्" शब्द प्रयुक्त किया है-ब्रह्म वह (तत्) है जो जगत् को जन्म लेता है (ज) उसे अपने में लीन (लि) करता है और धारण (अन) करता है। तैत्तिरीय उपनिषद् में भी इसी प्रकार का उल्लेख है। इस प्रकार स्वयं ब्रह्म ही विश्व का निमित्त एवं उपादान कारण है। ब्रह्म के संकल्पमात्र से उत्पत्ति स्थिति हो सकती है। यह ब्रह्म का सगुण रूप है। बृहदारणक उपनिषद् में ब्रह्म की लोकातीतता ज्ञापित करते कहा है- ब्रह्म असीम है, यह विश्व भी असीम है। "असीम ब्रह्म से असीम ब्रह्म की उत्पत्ति हुई। फिर भी असीम ब्रह्म असीम ही बना रहता है।"३ ___ यद्यपि ब्रह्म स्वयं में निर्गुण है फिर भी बुद्धि की कोटियों से हमें वह सगुण प्रतीत होता है। निर्गुण ब्रह्म सभी वर्णनों से परे है। हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ मन तथा बुद्धि वहाँ तक पहुँच नहीं सकती, उसकी केवल अनुभूति की जा सकती है। यदि उसका बुद्धि द्वारा वर्णन करना ही पड़े तो सर्वोत्तमवर्णन 'नेति नेति' कहकर निषेधात्मक रूप से किया जा सकता है। वह न स्थूल है, न सूक्ष्म है, न लम्बा है, न छोटा है। वह महत्तम से महान् तथा सूक्ष्मत्तम से भी सूक्ष्म है। वह सर्वव्यापी है। संक्षेप में सम्पूर्ण सृष्टि में वही एक द्रव्य है। वह ऐसा 'एक' है जिसे जान लेने पर 'सब' का ज्ञान हो जाता है। उसे सर्वोच्च सत्य के रूप में वर्णित किया है। ब्रह्मन् ज्ञान और परमानन्द तथा प्राण के रूप में वर्णित है। इस प्रकार यहाँ ब्रह्म के 2 रूप वर्णित हैं1. सगुण ब्रह्म-सृष्टि-प्रलय कर्ता 1. छान्दोग्य उप. 3.14.1 2. तैत्तिरीय उप. 3.1.1 . 3. बृहदा, उप. 5.1.1. 4. तैतिरीय उप. 2.4.1 5. बृहदारण्यक उप. 3, कठ. उप. 1.3.15, मुण्ड. उप. 6.1.6 6. छान्दोग्य उप. 5.16.2
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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