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________________ (110) किन्तु जैन परम्परा में इस सिद्ध पद का सूक्ष्मतया निरूपण किया हैषिञ् बन्धने (पाणिनीय. 1.4.78) 1. सितं-बद्धमष्टप्रकार कर्मेन्धनं ध्मातं-दग्धं जाज्वल्यमानशुक्लध्यानानलेन यैस्ते निरुक्तविधिना सिद्धाः-अर्थात् सित अर्थात् बांधा हुआ जो आठ प्रकार का कर्म रूपी ईंधन जिसने 'ध्मात' यानि जाज्वल्यमान शुक्लध्यान रूपी अग्नि से जलाकर भस्मीभूत किया है, वह सिद्ध कहलाता है। इस प्रकार 'सिद्ध' शब्द का निरुक्तविधि से अर्थ होता है। 2. अथवा 'षिधु गतौ'२ इति वचनात् सेधन्ति स्म अपुनरावृत्या निर्वृत्तिपुरीमगच्छन्-अथवा 'षिध्' धातु का गति अर्थ होने से जाने के पश्चात् वापिस न आना पड़े इस प्रकार जो मोक्ष नगरी में गये हैं, वे सिद्ध कहलाते हैं। 3. अथवा "षिधु संराद्धौ'३ इति वचनात् सिद्धयन्ति स्म-निष्ठितार्था भवन्ति स्म-षिध् धातु का 'संशद्धि' (निष्ठा) अर्थ होने से जिनका प्रयोजन सिद्ध हो गया, वह सिद्ध कहलाता है। ___4. अथवा 'षिधूञ् शास्त्रे माङ्गल्ये च" इति वचनात् सेधन्ति स्म शासितारोऽभूवन् माङ्गल्यरूपतां चानुभवन्ति स्मेति सिद्धा-अथवा 'षिध्' धातु का अर्थ शास्त्र और मंगल होता है, इससे जो शासक तथा जो मंगलरूप है, वह सिद्ध कहलाता है। ___5. अथवा सिद्धाः- नित्याः अपर्यवसानस्थितिकत्वात्-अथवा सिद्ध अर्थात् नित्य, क्योंकि उनकी स्थिति अनन्त होती है। 6. अथवा प्रख्यात भव्यरूपलब्धगुणसन्दोहत्वात्-अथवा प्रख्यात हैं, क्योंकि भव्य जीव उनके गुण के समूह को अच्छी तरह जानते हैं। जैसा कि कहा गया है कि "ध्मातं सितं येन पुराणकर्म यो वा गतो निर्वृतिसौधमूनि। ख्यातोऽनुशास्ता परिनिष्ठितार्थो यः सोऽस्तु सिद्धः कृतमङ्गलो में।।" -बद्ध प्राचीन कर्मों को भस्मीभूत कर दिया, जो मोक्ष रूपी महल की टोच पर ऊपर जाकर बैठे हैं, जो प्रसिद्ध हैं, जो अनुशासित है, कृतार्थ है, वे सिद्ध भगवान मेरा मङ्गल करे। 1. विशेषावश्यक भाष्य-२, गा. 3033-3037, नंदी सू. 54 2. पाणिनीयधातुपाठ 48 3. वही 1269. 4. पाणिनीय धातुपाठ 49. 5. भगवती सूत्र टीका मंगलाचरण
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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