________________ xxx (ग) उपाध्याय पद के लिए अर्हता (घ) उपाध्याय के पच्चीस गुण --- प्रथम पद्धति - ) (1) द्वादशांग के ज्ञाता उपाध्याय, (2) करणसप्तति के धारक उपाध्याय - (क) चार प्रकार की पिण्डविशुद्धि, (ख) बारह प्रकार की भावना, (ग) बारह भिक्षु प्रतिमाएं, (घ) पच्चीस प्रकार की प्रतिले खाना, (ङ) चार प्रकार का अभिग्रह; (3) चरणसप्तति के धारक उपाध्याय (क) दशविध श्रमणधर्म, (ख) सतरह प्रकार का संयम, (ग) दश प्रकार का वैयावृत्य, (घ) रत्नत्रय के धारक (अ) सम्यग्दर्शन (आ) सम्यग्ज्ञान (3) सम्यक् चरित्र; (ङ) बारह प्रकार के तप के धारक- (अ) बाह्य तप के छह भेद (1) अनशन तप, (2) अनोदरी तप, (3) वृत्तिपरिसंख्यान तप, (4) रसपरित्याग तप, (5) विविक्तशय्यासन, कायक्लेश, (आ) आभ्यन्तरतप के छह भेद - (1) प्रायश्चित तप, (2) विनय तप, (3) वैयावृत्य तप, (4) स्वाध्याय तप, (5) व्युत्सर्ग तप, (6) ध्यान तप, (4) प्रभावना सम्पन्न उपा याय - (1) प्रवचन प्रभावना, (2) धर्मकथा प्रभावना, (3) वाद प्रभावना, (4) त्रिकालज्ञ प्रभावना, (5) तप प्रभावना, (6) व्रत प्रभावना, (7) विद्या प्रभावना, (8) कवित्व प्रभावना; (5) मन, वचन काय का समाहरण, प्रकारान्तर से उपाध्याय के पच्चीस गुण / (ङ) उपाध्याय की सोलह उपमाएं - (1) शंखोपम, (2) काम्बोज अश्वोपम, (3) चारणदि-विरूदावलीतुल्य, (4) वृद्धहस्तीसम, (5) तीक्ष्णशृंगयुक्त धौरेय वृषभसम, (6) तीक्ष्णदाढ़युक्त केसरीसिंहसम, (7) शंखचक्रगदायुक्त वासुदे वसम, (8) चातुरन्त चक्रवर्ती सम, (6) सहस्रनेत्र-देवाधिपति शक्रेन्द्रसम, (10) उदीय मान सूर्यसम, (11) पूर्णिमाचन्द्रोपम, (12) धान्यकोष्ठागारसम, (13) जम्बूसुदर्शनवृक्षसम, (14) सीतानदीतुल्य, (15) सुमेरूपर्वतसम, (16) स्वयम्भूरमणसमुद्रसम / (च) उपाध्याय का कार्य (छ) उपाध्याय - भक्ति