________________ xxix (अ) पंचेन्द्रियनिग्रही आचार्य, (आ) ब्रहमचर्य की नवविध गुप्तियों के धारक आचार्य, (इ) चतुर्विधकषायजयी आचार्य, (ई) पंचमहाव्रत धारक आचार्य, (उ) पंचविधाचार पालन समर्थ आचार्य, (ऊ) पांच समिति और त्रिगुप्ति-सम्पन्न आचार्य; दिगम्बर परम्परा में मान्य आचार्य के छत्तीस गुणः(अ) आचारविषयक आठ गुण, (आ) आचार्य के स्थितिकल्परूप दस गुण, (इ) बारह प्रकार का तप, (उ) षडावश्यक / (घ) आचार्य पद प्रतिष्ठाः (ङ) द्विविध आचार्यः (क)- (1) प्रव्राजनाचार्य, (2) उपस्थापनाचार्य, (ख)- (1) उद्देशनाचार्य, (2) वाचनाचार्य / (च) आचार्य सम्पदा - अष्टविध -- (1) आचार सम्पदा, (2) श्रुतसम्पदा, (3) शरीर सम्पदा, (4) वचन सम्पदा, (5) वाचना सम्पदा, (6) मति सम्पदा, (7) प्रयोग सम्पदा, (8) संग्रह परिज्ञा सम्पदा (छ) आचार्य के कर्तव्य - (1) सूत्रार्थ स्थिरीकरण, (2) विनय का व्यवहार, (3) गुरुपूजा, (4) शैक्ष बहुमान, (5) दानप्रतिश्रद्धा-वृद्धि, (6) बुद्धिबलवर्द्धन / (ज) आचार्य की चतुर्विध विशिष्ट कियाएं - (1) सारणा, (2) वारणा, (3) चोयणा, (4) पडिचोयणा / (झ) आचार्य तथा उपाध्याय के पांच अतिशेष () आचार्य तथा उपाध्याय के संग्रहस्थान (ट) आचार्य तथा उपाध्याय का गण से अपक्रमण (ठ) आचार्य-भक्ति पंचम परिच्छेद : उपाध्याय परमेष्ठी 146.187 (क) उपाध्याय की गरिमा -- प्रकृष्टज्ञानी, बुद्धिबल सम्पन्न, श्रुतगुरु (ख) उपाध्याय पद की व्युत्पत्तिलभ्य व्याख्या