________________ xxviiनिरूपण, (ऊ) तीर्थंकर उपदेश का फल / (ट) तीर्थंकर अवतार नही : (अ) तीर्थंकर एक सामान्य जीव, (आ) आध्यात्मिक विकास से तीर्थंकर पद-प्राप्ति। (ठ) अरहन्त भक्ति और उसका फल तृतीय परिच्छेद :: सिद्ध परमेष्ठी 72-66 (क) सिद्ध पद का निर्वचन एवं व्याख्या : (1) कर्मबन्धमुक्त-सिद्ध (2) भव्यात्मा-सिद्ध, (3) अनन्तचतुष्टयी सिद्ध, (4) निरूपम एवं शाश्वत सिद्ध, (5) अष्ट महागुणसम्पन्न सिद्ध, (6) लोकाग्रभागस्थितसिद्ध, (7) त्रिलोकवन्दनीय सिद्ध, (8) परमसुखी सिद्ध, (6) परमविशुद्धात्माः सिद्ध परमात्मा, (10) निर्लिप्त परमात्मा सिद्ध / / (ख) सिद्ध के पर्यायवाची शब्द --(1) सिद्ध, (2) बुद्ध, (3) पारंगत, (4) परम्परागत, (5) उन्मुक्त कर्मकवच, (6) अजर, (7) अमर, (8) असंग / (ग) सिद्धगति का स्वरूप -- (1) शिव, (2) अचल, (3) अरुज, (4) अनन्त, (5) अक्षय, (6) व्याबाध (7) अपुनरावृत्ति / (घ) सिद्धों के मूलगुण - (1) अनन्तज्ञान, (2) अनन्तदर्शन, (3) अनन्तसुख, (4) अनन्तवीर्य, (5) सम्यक्त्व, (6) अवगाहनत्व, (7) स 6 म त्व , (8) अगुरुलघुत्व / (ङ) सिद्धों के आदिगुणः आदिगुण से अभिप्राय व संख्या / (च) सिद्धों की अवगाहना : अवगाहना से अभिप्राय, . सिद्ध-अवगाहना का आकार / (छ) सिद्धों का अनुपम सुखः सिद्धों का सुख देवेन्द्र एवं चक्रवर्तियों के सुख से बढ़कर, पराधीनता का अभाव ही सुख। (ज) सिद्धों की सादिमुक्तताः (अ) एक जीव की अपेक्षा सिद्ध-अनन्त, (आ) समुदाय की अपेक्षा