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________________ " सिद्ध परमेष्ठी सकता / वह अकेला, शरीर रहित और ज्ञाता है। 10. निर्लिप्त परमात्माः सिद्ध : ये परमात्मा न तो दीर्घ हैं, न ही हस्व, न वृताकार हैं, न ही त्रिकोण, न चौकोर हैं और न ही परिमण्डलाकार हैं / न काले हैं, न नीले, न लाल, न पीले और न ही शुक्ल हैं। सुगन्धित भी नहीं हैं और न ही वे दुर्गन्धित हैं / वे तिक्त भी नहीं हैं, न ही कटु,न कषैले हैं, न अम्ल और न ही मधुर हैं / वे कठोर भी नहीं हैं, न कोमल, न गुरु, न लधु, न शीत, न उष्ण, न स्निग्ध हैं और न ही वे रुक्ष ही हैं। वे सिद्ध परमात्मा शरीरवान्, जन्मधर्मा, और लेपयुक्त भी नहीं हैं, वे न स्त्री हैं, न पुरुष और न ही नपुंसक हैं। केवल वे परिज्ञानरूप और एकमात्र ज्ञानमय हैं। उनके लिए कोई भी उपमा नहीं दी जा सकती। उन अमूर्त अस्तित्व वाले सिद्ध परमात्मा का बोध कराने के लिए कोई भी पद नहीं है | वह शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्शरूप से परे हैं।' इसतरहशुक्लध्यान के चरमोत्कर्ष से अष्टकर्मो के नाशक,परमविशुद्ध आत्मा और मोक्ष में स्थित रहने वाले, निराकार तथा समस्त पौद्गलिक गुणों और पर्यायों से रहित सिद्ध परमात्मा हैं / सिद्ध अष्टगुणों एवं अनन्त चतुष्टय से युक्त होते हैं। वे स्थिर एवं शाश्वत लोक के अग्रभाग पर अवस्थित हैं। (ख) सिद्ध के पर्यायवाची पदः औपपातिकसूत्र के सिद्धाधिकार में सिद्ध के अनेकों पर्यायवाची शब्द उपलब्धहोते हैं-(१) सिद्ध, (2) बुद्ध, (3) पारंगत, (४)परम्परागत, (5) उन्मुक्त कर्मकवच, (6) अजर, (7) अमर और (8) असंग। 1. सव्वे सरा णियटेंति, तक्का तत्थ न विज्जइ। मई तत्थ ण गाहिया, ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयण्णे।। से ण दीहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले / ण किन्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे, ण सुक्किल्ले / ण सुभिगंधे, ण दुरभिगंधे / ण तित्ते, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे। ण कक्खडे, ण मउए, ण गरुए. ण लहुए. ण सीए, न उण्हे, ण णिद्धे, ण लुक्खे।। ण काऊ, ण रुहे. ण संगे। ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा। परिणे सण्णे। उवमा ण विज्जए / अरूवी सत्ता। अपयस्स पयं णत्थि / से ण सद्दे, ण रूवे, णं गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चे ताव / आयारो, 5.6. 123.140 2. सिद्धति य बुद्धत्ति य, पारगयत्ति य परंपरगय त्ति। उन्मुक्क-कम्म-कवया, अजरा अमरा असंगा य / / ओवाइयं, 165 (20)
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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