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________________ (274) देवधर तथा निज स्त्री जिनमति से प्रोत्साहित होकर श्रीसुविधिनाथ के खत्तक ( ताक ) का द्वार धर्मार्थ कराया, महामंगल और शोभा का कारण हो / " पृ० 183 (28) 9-" संवत् 1681 प्रथम चैत्रवदि 5 गुरुवार के दिन राठोडवंशीय सूरसिंहजी के उत्तराधिकारी महाराज श्रीगजसिंह के गज्य समय में मुहणोत्रगोत्रीय वींसा ओसवाल सा० जेसा, उसकी स्त्री जयवंतदे, उसका पुत्र सा० जयराज, उस की स्त्री मनोरथदे उसके पुत्र सा० सादा, सुंभा, सामल, सुरताण, प्रमुख परिवार के पुण्यार्थ सोनगिरि के ऊपर कुमारविहार नामक श्रीमहावीर-मन्दिर में सा० जेसा, स्त्री जयवंतदे, पुत्र सा० जयमल, उसकी बड़ी स्त्री सरूपदे के पुत्र सा० नहणसी, सुंदरदास, आसकरण | छोटी स्त्री सोहागदे, उसके पुत्र जगमाल आदि पुत्र प्रपौत्रादि के कल्याणार्थ सा० जयमलजीने प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वक श्री महावीरबिम्ब कराया और उसकी तपागच्छीय सुविहित प्राचार के पालक, शिथिलाचार के टालक साधुक्रिया के उद्धारक श्रीप्राणन्दविमलसूरिजी, उनके पाट पर सूर्य के समान श्रीविजयदानसूरिजी, उनकी गादी के शृंगारहार, महाम्लेच्छाधिपति श्रीअकबर बादशाह को प्रतिबोध देनेवाले, बादशाह से प्राप्त जगद्गुरु के विरुद को धारण करनेवाले, श्रीशजयादि तीर्थों का जीजीया नामक कर छुडानेवाले और अकबर से छः महिना की अमारी प्रवर्तानेवाले भ० श्रीहीरविजयसरिजी, उनके
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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