________________ (220) तस्माच्च सर्वदेवः सिद्धांतमहोदधिः सदागाहः / तस्माच्च शालिभद्रो भद्रनिधिगच्छगतबुद्धिः // 5 // श्रीशान्तिभद्रसूरी व्रतपतिजा........पूर्णभद्राख्यः / रघुसेना....स्ति...................बुद्धिम् // 6 // ....पयदिदं बिम्ब, नाभिसूनोर्महात्मनः / लक्ष्म्याश्चञ्चलतां ज्ञात्वा जीवितव्यं विशेषतः // 7 // गंगलं महाश्रीः / / संवत् 1084 चैत्रपौर्णमास्याम् // " इस प्रशस्ति लेख से जाहिर होता है कि थीरापद्रगच्छीय प्राचार्य शान्तिभद्र के समय में वि० सं० 1084 चैत्रसुदि 15 के दिन पूर्णभद्रसूरिजीने श्रीऋषभदेवस्वामी के बिम्ब की प्रतिष्ठा की और छट्टे श्लोक के अनुसार रामसैन्य के राजा रघुसेनने प्रतिष्ठा कराई मालूम होती है। ___गुर्वावलीकारने सं० 1010 में जिस ऋषभदेवमन्दिर में चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिष्ठा का उल्लेख किया है। वह प्रशस्ति लेखवाले मन्दिर से पुराना मालूम होता है। संभव है कि सं० 1084 के प्रशस्तिवाली प्रतिमा सर्वधातुकी और प्रमाण में आबु अचलगढ पर विराजमान प्रतिमा के बराबर होगी / ___ इन लेखों से यह बात निःसंशय हो जाती है कि बिक्रम की 11 वीं सदी में यहाँ अनेक प्रभावक प्राचार्यों के हाथ से प्रतिष्ठाएँ हुई थी और उस समय में रामसैन्य का गजा रघुसेन था, जो जैनी था और उसने यहाँ जैनप्रतिमाओं की स्थापना की थी। इस समय यहाँ के कतिपय स्थानों का खोदकाम करते प्राचीन