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________________ (221) प्रतिमाएँ, इमारतों के खंडेहर, मन्दिरों के पत्थर, कूआ वावडियों के देखाव और सिके आदि प्राचीन उन्नति के स्मारक देखनेवालों के हृदय को खींचते हैं। गमसेण का प्राचीन नाम रामसैन्य है। यह भीमपल्ली ( भीलडिया ) से उत्तर 12 कोश और डीसारोड़ से वायव्यकोण में 10 कोश दूर है। यह गाँव वाघेला राजपूत ठाकुर के ताबे में है / यहाँ के जैनेतर लोगों का भी जिनमन्दिर पर यहाँ तक दृढ विश्वास है कि जिनमंदिर की कोई भी चीज कोई नहीं वापरता / एक वख्त बहार पडे हुए जिनमन्दिर के एक पत्थर को किसी किसानने उठा कर अपने कुए पर रख दिया / जोग ऐसा बना कि उसी दिन उसका बंधा हुआ कुत्रा गिर पड़ा / इससे किसानने पत्थर को लेकर पीछा जिनमन्दिर में रख दिया / इसी प्रकार मन्दिर की एक शिला को उठा कर ठाकुरने अपने बैठक के चौंतरे पर जड दी / मौका ऐसा बना कि उसी दिन ठाकुर को रात्रि के समय मरणान्त कष्ठ होने लगा जिससे घबरा कर ठाकुरने शिला को पीछी मन्दिर पहुंचा दी / ऐसी एक दो नहीं किन्तु, अनेक घटनाए यहाँ के लोग कहते हैं। इसी भय से यहाँ के लोग मन्दिर की किसी वस्तुको उठाने तक की इच्छा नहीं करते / 186 वरण___ यहाँ पोरवाड़जैनों के छः घर और एक छोटा शिखरबद्ध जिनमन्दिर है / मन्दिर में एक फुट बडी महावीरप्रभु की पाषाणमय मूर्ति स्थापित है / इस मन्दिर को गाँवो गाँव से उघराणी करके श्राविका भूतिने बनवाया है। ....... वारप्रभु की पा भूतिने बना मन्दिर को
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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