________________ (219) " संवत् 1286 वर्षे वैशाखबदि 1 गुरौ वा राज सिंघस्तयोः सुत केल्हणभ्रातुर्वाग्भटप्रभृतैः कारिताः, प्रतिष्ठिता पं० पूर्णकलशेन / " प्राचार्य श्रीमुनिसुन्दरसूरि स्वरचित गुर्वावली में लिखते हैं कि विक्रम सं० 1010 में पायार्य सर्वदेवसूरिजीने रामसैन्य नगर के श्रीऋषभदेव भगवान् के मन्दिर में आठवें तीर्थंकर श्रीचन्द्रप्रभ स्वामी के बिम्ब की विधिपूर्वक प्रतिष्ठा की / इस आशय को प्रगट करनेवाला गुर्वावली का श्लोक यह है नृपादशाये शरदां सहस्र, यो रामसैन्याहपुरे चकार / नाभेयचैत्येऽष्टमतीर्थराजबिम्बप्रतिष्ठां विधिवत्सदर्ग्यः गमसेण ते पूर्व 1 मील जंगली धूल के ढुब्बे को खोदते हुए सर्वधात की एक जिनप्रतिमा की बैठक का परिकर निकला है जो बहुत सुन्दर और इस समय नवीन मन्दिर में रक्खा हुआ है / इसके नीचे दो पंक्ति का पद्यबद्ध ऐसा लेख खुदा हुअा है" अनुवर्तमानतीर्थप्रणायकाद्वर्द्धमानजिनवृषभात् / / शिष्यक्रमानुयातो जातो वज्रस्तदुपमानः // 1 // तच्छाखायां जातस्थानीयकुलोद्भुतो महामहिमा / चन्द्रकुलोद्भवस्ततो वटेश्वराख्यः क्रमबलः // 2 // थीरापद्रोद्भूतस्तस्माद् गच्छोत्र सर्वदिख्यातः / शुद्धाच्छयशोनिकरैर्धवलितदिक्चकवालोऽस्ति // 3 // तस्मिन्भूरिषु सूरिषु देवत्वमुपागतेषु विद्वत्सु / जातो ज्येष्टायर्यस्तस्माच्छ्रीशान्तिभद्राख्यः // 4 //