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________________ ( 214 ) वास्तव्य ओसवंशे लघुशाखायां मामडागोत्रे सेठ नरशी नाथा भार्या कुंअरबाई तत्पुत्र सेठ हरसंगभाई श्रीसिद्धक्षेत्रे श्रीअनंतनाथजिनबिंबं भरापितं गच्छनायक भट्टारक श्री 7 रत्नसागरसूरीश्वर प्रतिष्ठितं / ( दोनों बगल की) 181 रतनपुर मारवाड राज्य के दक्षिण भाग में डीसा स्टेशनसे 20 कोश और जसवंतपुरा से 18 कोश के फासले पर यह कसबा श्राबाद है / विक्रम की 11 तथा 12 वीं सदी में यह एक अच्छे शहरों में शुमार किया जाता था / परन्तु श्रीमाल के ध्वंस के साथ साथ यह भी आज गामडे के रूप में आ गया / इस समय यहाँ एक भी जैन का घर नहीं है, शिर्फ तीस घर किसानों के है / जैनगोत्र संग्रह में जिखा है कि राजा हमीरजी परमार के वंशज गोविन्दशेठने सं० 1341 के लगभग रतनपुर में 72 जिनालयवाला आदिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया था और उसकी प्रतिष्ठा अंचलगच्छीय जयशेखरसूरिने की थी / वर्तमान में इसका खंडेहर मात्र है कुमारपाल के कतिपय चरित्रों से भी पता मिलता है कि___परमार्हत राजा कुमारपालने भी रतनपुर में भगवान पार्श्वनाथ का भव्य जिनालय बनवाया था जो श्रीहेमचन्द्राचार्य के हाथ से अन्तिम प्रतिष्ठा मन्दिर था। इसका भी हाल में यहाँ निशान तक दिखाई नहीं देता / गाँवसे पश्चिम बाहर एक महादेव का देवल है उसके गुंबज में एक शिला लेख इस प्रकार लगा हुआ है.-- ॐ नमः शिवाय, भूर्भुवस्स्वश्वरं देवं वंदे पीठं पिनाकिनं
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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