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________________ (206) इस प्रभावशालिनी मूर्ति की अञ्जनशलाका किस समय में किस समर्थ जैनाचार्य के हाथ से हुई, इसका कुछ भी पत्ता नहीं लगता / इस मन्दिर में पाषाण की छोटी बडी 23 और सर्वधात की 4 मूर्तियाँ स्थापित है, जो 12 और 18 वीं सही तक की प्रतिष्ठित हैं / इसके दहिने तरफ के मैदान में एक पक्का भोयरा है, जो हमेशा बन्द रहता है / उसके प्रवेश मार्ग के ऊपर के पाषाण के पाट में शिलालेख लगा है कि___ " श्रीपार्श्वपते नमः / संवत् 1671 वर्षे शाके 1536 वर्तमाने चैत्रसुदि 15 सोमवारे श्रीपार्श्वनाथदेवलमध्ये श्रीचन्द्रप्रभ-मंदिरं कारापित, रुपइया सहस्र 20156) खरचाणा, जालोरे खां पहाडखान गजनीखान सुतराज्ये, भीनमाल सोलंकी वीदा रहनेरा दोकड़ा श्रीपारसनाथरा देव का खरचाणा, प्र० उदिम श्रीवडवीरभीमशाखावाला श्रीभावचन्द्रशिष्य भट्टारक श्रीविजयचन्द्रसूरिवराभ्यां सलावट जसा सोढा देदा काम की, नाम उकेर्यो श्री श्री" ५-पांचवां मन्दिर बाजार में जो छोटा, पर रमणीय शिखरवाला है / इसमें बादामी वर्ण की दो फुट बड़ी श्रीशान्तिनाथजी की सुन्दर मूर्ति विराजमान है / इनके अलावा पाषाण की 6, और सर्वधात की 26 मूर्तियाँ भी स्थापित हैं, जो 12 से 18 वीं शताब्दी तक की प्रतिष्ठित हैं। कहा जाता है किप्रथम यहाँ मूलनायक श्रीआदिनाथस्वामी थे, परन्तु उनके कहीं विलोप हो जाने से, उनके स्थान पर यह नये श्रीशान्तिनाथजी
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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