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________________ (205) जोड में पीर, पेगम्बर आदि कोई नहीं पा सकता। तुं साहेब, सुलतान और खुदा है, सारी दुनिया का तुंही एक पालक है / अतएव बालक पर महेर करो, आयंदे मैं कभी ऐसा अपराध नहीं करूंगा।' इस प्रकार अर्ज करके और सभी श्रीसंघ को बुला के भारी समारोह और जुलुस के साथ पार्श्वनाथ-प्रतिमा भीनमाल पहोंचा दी। .. ____संघवी वीरचंद मेता बहुत प्रसन्न हुआ, उसने अष्टाह्निकामहोत्सव पूर्वक पार्श्वनाथ-प्रतिमा की पूजा कर के 17 दिन के बाद कृत अभिग्रह का पारणा किया। पार्श्वनाथ-प्रतिमा का अतिशय चारों तरफ प्रसरा, जैनधर्म की उन्नति हुई, सभी सन्ताप दूर हुए और प्रतिगृह मंगल बधाईयाँ हुई / संघने एकत्रित होकर स्वर्ग के समान कोरणी धोरणी से सुशोभित सौधशिखरी नया मन्दिर बनवा कर उसमें सुरम्य मुहूर्त और बलिष्ट शुभ लग्न में सातिशयवाली पार्श्वनाथ-प्रतिमा को महा महोत्सव पूर्वक विराजमान की।" कवि पुण्यकलशने यह हकीकत अपने समय में हुई घटना के दश वर्ष बाद लिखी है / अतएव इस घटना में बहुत कुछ सत्यांश माना जा सकता है / उक्त सभी उपलब्ध सामग्री से इस निश्चय पर निर्विवाद आना पड़ता है कि यह प्राचीन पार्श्वनाथ-प्रतिमा अद्भुत महिमशालिनी और अतिदर्शनीय है, और ऐसी प्रभावशालिनी प्रभुप्रतिमाओं के विद्यमान रहेने से ही इस पवित्र नगर को भिन्न भिन्न तीर्थमालाओं में तीर्थ तरीके स्थान मिला है।
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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