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________________ ( 162) 144 भूति. इस गँव के दो विभाग हैं जो दो वास के नाम से पहचाने जाते हैं / यहाँ ओसवालों के 35 और पोरवाड़ों के 60 घर हैं, जो सभी सनातन त्रिस्तुतिक संप्रदाय के हैं / रामसिंहजी के वास में छोटी पहाड़ी की ढालू जमीन पर एक नवीन सौधशिखरी जिन-मन्दिर है / इसके मूलनायक श्रीमहावीरस्वामी हैं जिनकी पलांठी के ऊपर लिखा है कि __ " संवत् 1969 शाके 1834 माघशुक्ला 10 मंडवारियानगरवास्तव्य खूमाजी सुत-जेठा-डाहा-विजयचन्द्रकारिताञ्जनशलाकायां भूतिनगरवास्तव्य ओ० वेदमूथा खीमासुत सहसमलस्य केशामात्रा श्रीमहावीरजिनबिम्बाअनशलाका कारापिता। कुता च श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीयश्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरशिष्यश्रीधनचन्द्रसूरिभिः / लि० उ० मोहनविजयेन। दूसरा मन्दिर चतरसिंहजी के वास में है, जो गाँव के मध्य भाग में है और शिखरबद्ध है / इसके मूलनायक श्रीऋषभदेवस्वामीजी हैं जो श्याम-रंग के 4 फुट बडे हैं / इनकी पलाठी पर इस प्रकार लेख है:: सं० 1969 माघशुक्ल 10 रविदिने पुनर्वसुनक्षत्रे मंडबारियानगरवास्तव्य शा खूमाजीसुतजेठाडाहाविनयचन्द्रकारापिताञ्जनशलाकायां श्रीभूतिनगरे ओशवंशीय वेदमूता हीराजीदेवीवंदखेमराजैः श्रीआदिनाथविम्बाञ्जनशलाकासह-प्रतिष्ठा
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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